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Wednesday, July 1, 2020

"*आत्मा की शांति *"

Meri kahaniya... 

                 * आत्मा की शांति *


आत्मा की शांति.....

घर में क्रंदन मचा हुआ था। रात घर के मुखिया प्रकाश जी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। सभी रिश्तेदारों को खबर करवा दी गई थी। दूर-दूर से रिश्तेदारों के आने में 12:00 बज गए। प्रकाश जी की पत्नी अपने पति की असामायिक मृत्यु से सदमे में थी और कई बार बेहोश हो चुकी थी। उनकी पुत्र वधू किसी तरह उन्हें संभाल रही थी।
उनका डेढ़ वर्षीय पोता अपनी दादी के आंसू पोंछता और फिर खुद भी रोने लग जाता। थोड़ी थोड़ी देर में वह अपनी मां को दूध व खाने के लिए भी कहता। लेकिन रमा आने जाने वालों को पानी देने व बैठाने के इंतजाम करने में इतनी व्यस्त थी कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
दाह संस्कार से आने के बाद बड़े बुजुर्ग व अन्य पारिवारिक सदस्य प्रकाश जी की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं के शांतिभोज में क्या क्या बनेगा इस बात पर चर्चा करने बैठ गये।
रमा की बुआ सास ने उसे घर की धुलाई के लिए बोल दिया। रमा ने जल्दी से सारे काम निपटा, अपने बेटे के लिए खिचड़ी बना दी। वह जैसे ही उसे खिलाने के लिए खिचड़ी थाली में डालने लगी, तभी बुआ सास रसोई में आ गई और खिचड़ी देखते ही गुस्से से बोली "यह क्या अनर्थ कर दिया बहु तूने! तुझे इतना भी नहीं पता कि घर में 2 दिन तक चूल्हा नहीं जलता!"

रमा घबरा गई और बोली "माफ करना बुआ जी, मुझे नहीं पता था। राघव सुबह से भूखा था और वो दोपहर में खिचड़ी ही खाता है इसलिए मैंने बना दी।"
" खिचडी क्यों, पकवान बना देती! कुछ देर और रुक जाती पड़ोसी ला रहे थे ना खाना बनाकर। पर तुम्हें तो अपनी मनमानी करनी है। अब खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही है। अपने ससुर की आत्मा की शांति चाहती है तो जा फैंक दे इस खिचड़ी को।"
रमा जैसी खिचड़ी को फैंकने लगी, तभी उसकी सास वहां आ गई और बोली "रुक जा बहु। खिचड़ी फैंकने की कोई जरूरत नहीं । जा इसे राघव को खिला दे।"
"यह क्या कह रही हो भाभी। यह तो नादान है। तुम्हें तो सब रीति रिवाजों का पता है ना!"
"सब पता है मुझे इन आडंबरों का। वहां तेरे भैया की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई और यहां बैठ सब उनकी तेरहवीं पर बनने वाले पकवानों की लिस्ट बनाने बैठ गये। देखो तो जरा बाहर। अभी तक सब घड़ियाली आंसू बहा रही थे और अब हंसी ठिठोली में मगन है। ये सब तो समझदार है ना! जानती हूं तुझे भी अपने भैया के असमय जाने का बहुत दुख है। लेकिन इसमें इस नासमझ का क्या दोष! इन रीति रिवाजों के नाम पर इस नन्ही सी जान को भूखा रखना शोभा देता है क्या! तुझे तो पता है ना कि तेरे भैया की जान बसती थी अपने पोते में तो क्या उसे भूखा देखकर उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। " कह रमा की सास रोने लगी.....



"सही कह रही हो भाभी। भैया की आत्मा को शांति उन पकवानों से नहीं, अपने पोते को ये खिचड़ी खाते देख कर मिलेगी। जा बहु खिला दे राघव को खिचड़ी।" कह वह भी अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछने लगी...



         Thanku fot read....... 

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