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Sunday, June 28, 2020

* माँ का प्यार *

Meri kahaniya 


                 माँ का प्यार, 

......😊तीन वर्षीय टिंकू कुर्सी पर झूलते झूलते मोबाइल चला रहा था...
अचानक कुर्सी टूट गई ...
टिंकू धडाम से जमीन पर गिरा ....ये देखकर उसका बडा भाई दौड़ते हुए आया और मोबाइल छीनते हुए बोला
इसीलिए मे तुझे मोबाइल नही देना चाहता....
तबतक पिताजी भी वहां पहुंच गए....
थप्पड़ों की बरसात करते हुए बोले...नालायक...
कितनी बार तुझे कहा है कुर्सी बैठने के लिए होती है झूला झूलने के लिए नही ...
इतनी पुरानी मनपसंद कुर्सी तोड दी ...
आज से तेरी पाँकेटमनी बंद....
तबतक रसोईघर में काम कर रही मां भी दौड़ती हुई आई ...टिंकू को गोद मे उठाकर पुचकारते हुए बोली 
मेरे बच्चे ...कही चोट तो नही लगी ...
शरीर पर इधर उधर देखने लगी और फूंक मारकर हाथ पैरों को सहलाने लगी ....
टिंकू का कोमल मन प्यार का असल मतलब समझने की चेष्टा कर रहा था....
दोस्तों यहां मे किसी परिवार के सदस्य से मां के प्यार की तुलना नही कर रहा बल्कि बस यही बताने की कोशिश कर रहा हूं एक मां को बच्चे के चोट दुख और परेशानियों का एहसास सबसे ज्यादा होता है ....
और उसकी वजह है ...वो दुनिया में आपको किसी से भी नौ महीने अधिक जानती है महसूस करती है...

thanku for read....

Wednesday, June 24, 2020

* नया रिश्ता *

Meri kahaniya..

                                      

                                     नया रिश्ता 




..........बिदा करा कर बारात वापस आयी और मैं इन्हें अपनी नौकरी वाले शहर ले आया । ......


छोटा सा मकान , आगे बरामदा , दो कमरे, किचन , पीछे कच्चा मिट्टी वाला आंगन जिसमे एक नीम का पंद्रह बीस फुट ऊंचा पेड़ था ।


पहले ही दिन सवेरे सवेरे इन्होंने आंगन के सेंटर में गोबर से लीप कर मायके से लायी तुलसी लगा दी ।चारो तरफ़ रंगोली बना कर दीपक जला मेरी तरफ़ विजयी भाव से देखा... मैं तो पहले ही सब हार चुका था .. मुस्कुरा दिया ।

इन्होंने मेरे क्वार्टर को उस सवेरे घर मे बदल दिया था । नीम वाले आँगन में कुछ कमी तो मुझे पहले भी लगती थी पर वो क्या थी , इन्होंने पहली सुबह ही बता दिया ।


गाँव और शहर का फर्क मुझे कभी इनकीं चेहरे हाथों की भाव भंगिमाओं में तो कभी चौड़ी फैलती आंखों में तो कभी मुँह से निकलती हाय राम , जे का है तो कभी हाय दैया में !

हर वक़्त एक ही सवाल पूछती , ' आपको का पसंद , का खाओगे , का बनाएं ? ऐसा दिन में चार पाँच बार तो हो ही जाता । और मैं टटोल रहा था कि इसे क्या क्या पसंद है ?.........


गाँव की मिठाई , साड़ियाँ , गहने इन्हें शहर में नही दिख रहे थे । बाज़ारो में इनको इतना सब नया नया दिख रहा था ये हर दुकान पर रुक कर पूछती , ' जे का है , जा से का होत , जे आपको पसंद , बो ले लो आप अपने लाने !"

मैं इसे पूछता ये ले लो , ये पहनोगी , ये खाओ , ये ले चलो .. पर हर बात का उत्तर एक ही होता , ' हमे का कन्ने जे सब ले कर , हमे नई लेने !"

एक महीना हो चला । इनका यही ' ना ना का पहाड़ा ' चल रहा था , मुझे अच्छा नही लग रहा था जो हर बात के लिए मना कर देती ।

वो शाम गहरा गयी थी ।....


आकाश में बादल भी घुमड़ रहे थे , आज शायद बारिश होगी , मैंने इन्हें कहा ... और लाइट चली गईं ।

बारिश के आसार होते ही बिजली जाती रहती थी पर शादी के बाद पहली बार आज शाम को घुप्प अंधेरा छा गया । मैं कुछ कहता इससे पहले ही ये आले में रखी ढिबरी जलाने की तैयारी करने लगी ।

उनकी आँखों में मुझे मायके की चमक दिख रही थी धुंधलके में घूँघट से ढिबरी की लौ में एक बार फ़िर से गाँव के उस पीछवाड़े के हीरे चमक उठे और मैं सम्मोहित सा इन्हें देख रहा था ।


.....ये माचिस जलाती और मैं फूँक मार कर बुझा देता ,तीन चार बार ऐसा ही किया और घूँघट चुप चाप झुक गया ..

मैंने कहा , " आज तुम्हे बताना ही पडेगा कि तुम्हे क्या क्या पसंद है .. सब्ज़ी में , मिठाई में , गहनों में , कपड़ो में कुछ बोलती ही नहीं , आज बताना ही पड़ेगी अपनी पसंद . ... वरना मैं ढिबरी नही जलने दूँगा ..। "

अचानक ... घूँघट मेरे सीने से आ लगा और मद्दम आवाज़ आयी , " आप और सिर्फ़ आप ... बस !" उस रात .. न तो बिजली आयी और न ढिबरी ही जली ... पर रात भर बादल बरसे और ... ख़ूब बरसे ...

    

Kuch to baat hai.....Is barish me...😊😊😉

......यार गांव की लड़की और शहर की लड़की में सच ने बहुत अंतर होता है ।

आपको ये स्टोरी कैसी लगी ।।।...... कमेंट seccion में जरूर बताएं।।।


...             ...thanku for read.....

Sunday, June 21, 2020

* Happy Father's day *

       😊         " हैप्पी फादर्स डे...    😊
  
Happy Father's day

@@पता है मोहनजी.... अपनी आराध्या ने बताया इस संडे फादर्स डे है ...
सुनो ना ...मे कया कहती हूं इस सुअवसर पर हमें पापाजी को एक कलाई घडी देनी चाहिए.....
सुधा अपने पति मोहन से बोली ...उसकी आँखों में एक खुशहाल सी चमक थी वही चमक उसकी सास की आँखों में भी थी..
कया ...कलाई घडी ...कयो ...उनके पास मोबाइल है ना टाइम देखने के लिए...

आपको नही पता पापाजी को कलाई घडी बहुत पसंद है आँफिस जाते वक्त बहुत चाव से बांधते थे ऐसा मम्मी जी ने बताया था एकबार... रिटायरमेंट के वक्त जो उपहार स्वरूप उन्हें मिली थी वो तो कबकी टूट चुकी ...आपसे कितनी बार कहा उसे बनवाने को मगर ...
सुनिए ना इसी बहाने सही उन्हें उनके होने का अपनी अहमियत का एहसास होगा जो वो अक्सर आपकी आँखों में तलाशते है....

देखो मुझे ये बेकार के चोचले पसंद नहीं और ना ही फालतू के खर्चे ...तुम्हें अच्छे से पता है ...है ना...बेकार का फादर्स डे ...आजतक तो कभी पहले नही मनाया हमने ....इन बेकार की चीजों पर ध्यान मत दो ...फालतू के चोचले....
अच्छा हां ....ये परसों बांस की वाइफ का बर्थडे पार्टी है उन्होंने ड्रेस कोड ग्रीन कलर रखा है मेरे पास तो ग्रीन शर्ट कोट पेंट है तुम एक ग्रीन कलर का गाउन ले आना अपने लिए ....ये लो कार्ड....कार्ड देते हुए मोहन बोला
शायद आप भूल गए मोहनजी.... मे भी आपकी ही तरह हूं मुझे भी ये दुनिया के चोचले पसंद नहीं और ना ही फालतू के खर्चे का शौक .......
अब सुधा की आँखों में संतोष भरी चमक थी साथ ही वहीं चमक उसकी सास की आँखों में भी थी ...जो दीवार पर एक हार टंगी तस्वीर मे मुसकुरा रही थी...
अरे सुधा ....
बस मोहनजी बस ....कल यही सब हमारी औलाद हमारे साथ करेंगे तो ...बुजुर्गों को बच्चों से छोटी छोटी खुशियां मिलती रहे तो उन्हें बुजुर्गियत मे दवाओं से अधिक ताकत मिलती है जीवन जीने मे ....और हम ...कया खुशियां दे रहे है पापाजी को ....
एकदम सन्नाटे से मोहन चौका एकपल मे उसे अपना भविष्य सामने आइने मे दिखाई देने लगा...वो झुझंलाते हुए चीखा....नही.... मुझे क्षमा कर दो सुधा क्षमा कर दो....
माफी मुझसे नही पापाजी से मांगिए ....
मोहन तुरंत दौडकर अपने पिता के कमरे में पहुंचा और पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा ...पिता ने उसे उठाकर सीनेसे लगाकर कहा -माफी ...पर मोहन तुमने किया कया है बेटा ....
कुछ नही पापाजी ....कल फादर्स डे है ये भूल गए थे ...
कया....अरे मेरे बच्चो तुम मेरे पास हो मेरे साथ हो मेरा तो हरदिन फादर्स डे है ...सदा खुश रहो ...कहकर मोहन को गले से लगा लिया....आज मोहन को सचमुच पिता की अहमियत और उनके होने का एहसास हो रहा था ......

    Happy Father's day .......😊

Friday, June 19, 2020

* महत्व * ( पहली तारीख )

                    " महत्व "...(पहली तारीख ) ....  
Meri kahaniya
Happy Father's day

आज का दिन बाकी दिनों से अलग था...
परिवार में सभी खुश थे। सभी सदस्यों की इच्छाएं जो पुरी होने जा रही थी। रसोई घर में रमन की मनपसंद सब्जी बना रही पत्नी नदंनी बार-बार घड़ी देख रही थी। कितने समय बाद उसके गहने सुनार के यहां से घर वापिस आने वाले थे। ...

आर्थिक तंगहाली में सुनार के पास गिरवी रखे जेवरों के लिए इस बार नदंनी अड़ गयी थी। उसे वे जेवर इस महिने हर कीमत पर चाहिए थे। रमन स्वयं भी मना करते-करते थक गये थे। सो इस माह की सैलेरी में से सुनार का अब तक का ब्याज जमा कर गृहलक्ष्मी के गहने घर लाने का वचन रमन अपनी पत्नी को दे चूके थे। 
दोनों काॅलेज अध्ययनरत बच्चें अंशिका और अंश भी दरवाजे पर टक-टकी लगाये अपने पिता की प्रतिक्षा कर रहे थे। रमन बेटी अंशिका को हर माह अपनी तनख्वाह में से कुछ राशी देते थे। यह राशी अंशिका अपने लेपटाॅप कम्प्यूटर के लिए जमा कर रही थी। यदि आज रमन उसे आखिर किश्त दे तो लेपटाॅप क्रय करने की समुचित राशी का प्रबंध हो जायेगा। 

अंश इस अभिलाषा में था कि आज उसके पिता काॅलेज की वार्षिक परिक्षा शुल्क की व्यवस्था कर देंगे। ताकी वह निर्भिक होकर परिक्षा में बैठ सकेगा। बुढ़े माता-पिता हमेशा की आज भी निश्चिंत थे। परिवार के जरूरी सदस्यों की मांग पुरी हो जाये तब जाकर उनका नम्बर आयेगा, वर्ना नहीं।
रमन द्वार पर आ चुका था। उसे देखते ही सभी की आंखों में चमक आ गयी। रमन भी उन सभी की मंशाओं पर खरा उतरा। वह अपने चश्मे को रूमाल से पोंछकर कुछ खड़ी सुस्ता रहा था। पार्वती गिलास में पानी ले आयी। क्योंकि उसकी बहू नंदनी अपने गहने देखने में व्यस्त थी। और बच्चें लेपटाॅप की राशी गिनने में व्यस्त हो गये थे। सम्मुख खड़ी अपनी मां को देखकर रमन कुछ चिंतित हो गये। सबके लिए बर महिने कुछ न कुछ अवश्य आता था। किन्तु मां-बाप के इच्छुक होते हुये भी रमन अपनी प्राथमिकताओं में दोनों की इच्छाएं सम्मिलित नहीं कर पाया। अपनी मां के हाथों से पानी का गिलास रमन ने ले लिया। 

"अरे पिताजी! ये आप क्या रहे है? मैं अपने जुते निकाल लुंगा। मुझे पाप का भागी मत बनाईये।" रमन अपने पिता गंगाराम से बोला।
गंगाराम अपने बेटे रमन के पैरों से जुते निकाल रहे थे।
"करने दे बेटा। तु सबके लिए इतना कुछ करता है! हमारी भी जिम्मेदार है कि कुछ तेरे लिए भी करे।" पार्वती बोली। वह अपने आँचल से रमन का पसीने से सना माथा पोंछ रही थी।
"पिताजी! मूझे माफ़ कर दीजिए। आपका चश्मा इस महिने भी बन नहीं पायेगा।" रमन ने अपनी विवशता बताई।
"कोई बात नहीं बेटा। तु मेरे चश्मे की चिंता मत कर।" गंगाराम बोले।
"और मां! आपकी तीर्थ यात्रा! लगता है इस महिने भी नहीं हो पायेगी।" रमन बोला। उसकी आंखे भीग चूकी थी।
"अरे! तु हमारी चिंता छोड़! अपनी चिंता कर। देख तेरे जुते कितने खराब हो चूके है।" पार्वती बोली।
"नहीं मां! अभी तो ये कुछ महिने और चलेंगे!" रमन बोला।
"नहीं बेटा। तुझे डायबीटीस है। पैरों की सुरक्षा आवश्यक है। देख तेरे पिताजी तेरे लिए क्या लेकर आये है?" पार्वती बोली।
रमन आश्चर्य से गंगाराम की ओर देख रहा था। गहने तिजोरी में सही सलामत रखकर ही नदंनी को चैन आया। वह बेडरूम से निकलकर बाहर आ गयी। अंशिका प्रसन्नचित होकर लेपटाॅप का ऑनलाईन ऑर्डर दे चूकी थी। अंश के पास परीक्षा फीस के रूपये आ चूके थे। जिन्हें कल ही वह काॅलेज में जमा करने जाने वाला था।
गंगाराम ने हाथों का पैकेट रमन की ओर सरका दिया। रमन के साथ परिवार के सभी सदस्य देखना चाहते थे की आखिर उस डब्बें नुमा पैकेट में है क्या?

"ये क्या पिताजी! जुते!" रमन चौंका।
"ये तो बहुत मंहगे लगते है?" अंश ने जुते हाथ में लेकर कहा।
"लेकिन इतने पैसे बाबुजी के पास कहाँ से आये?" नंदनी ने हैरानी से पुछा।
"चिंता मत करो बहू! तुम्हारे ससुर ने ये जुते अपनी मेहनत की कमाई के पैसों से खरिदे है?" पार्वती बोली।
"क्या मतलब मां?" रमन ने पुछा।

"दिन भर घर में बोर होते थे। चौक पर दोस्तों के साथ गप्पें लड़ाते-लड़ाते थक गये तो हमारे ही मोहल्ले की एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। तेरे पापा को भी आज पहली तारीख पर तनख्वाह मिली है। ये जुते उसी तनख्वाह के रुपयों से आये है।" पार्वती ने बताया।

"मगर पिताजी! आपको नौकरी करने की क्या जरूरत थी।" रमन बोला।
"मुझे जरूरत नहीं थी बेटा! ये बात मुझे पता है। मगर मुझे लगा, खाली वक्त़ बिताने के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह है।" गंगाराम बोले।
रमन समझ चुका था कि उसके पिताजी मूल बात छिपाना चाहते है।
"देख बेटा! तु हमारे घर की रीढ़ है। तुझे कुछ भी जाये तो हमारा गुजर- बसर कैसे होगा? इसलिए सबसे आवश्यक है कि तु पुरी तरह स्वस्थ्य रहे और सभी आवश्यक वस्तुएं तेरे पास हो ताकी तेरी दिनचर्या किसी भी तरह प्रभावित न हो।"
गंगाराम बोले।

"मगर पिताजी! इन रुपयों से आपका चश्मा भी खरीदा जा सकता था।" रमन बोला।
"हां। लेकिन उससे भी जरूरी तेरे जुते थे। मेरा चश्मा अगले महिने बन जायेगा लेकिन तेरे फटे जुते अगले महिने तक नहीं चल पायेंगे।" गंगाराम बोले।
"मगर बाबुजी•••।" रमन बोलते-बोलते रूक गया।
"बेटा रमन! ये सब मैं हमारे परिवार के लिए ही कर रहा हूं। रमन! तु है तो हम सब है। तेरे बिना हम कुछ भी नहीं है।" गंगाराम बोलते हुये भावुक हो गये।
पार्वती की आंखे भी भर आयी। पिता-पुत्र की परस्पर चिंता ने उपस्थित सभी के नैन भिगो दिये।

"और ये ले। सुना है तेरी डायबीटीज की दवाई भी खत्म हो गयी है। तेरे बाबूजी घर आते हुये ये दवांये भी ले आये है। ले रख ले। और समय से खा लेना।" पार्वती कुछ कड़क आवाज़ का ढोंक करते हुये बोली।

रमन की तरह शेष सभी सदस्य नि:शब्द थे। गंगाराम और पार्वती के कृत्यों को देखकर नदंनी अपना कद बहुत छोटा अनुभव कर थी। अंश और अंशिका को शायद पहली बार अपने पिता का महत्व किसी ने इतने सरल तरीके से समझाया था....

 *   " दोस्तों जीवन में "पिता "का महत्व कया होता है अपने हाथ मे अंगूठे के जैसा है जो परिवार में सबको बांधकर रखता है जैसे एक मुठ्ठी बनाने मे अंगुलियों को अंगूठा अपने पीछे कर सामने से मजबूती देता है " *
      ...Thanku for read...

Thursday, June 18, 2020

"एक दूजे के लिए.....

Meri kahaniya 
       "एक दूजे के लिए.....

लड़की के बाल थोड़े उलझे से थे....
Meri kahaniya

जैसे की सुबह बना कर दोबारा कंघी करने का समय ही ना मिला हो...उसपर मटमैले से रंग का कुरता भी घिसा सा था...

वो चुपचाप कोने की कुर्सी पर बैठी थी...

जतिन को बड़ा अटपटा लगा कया ये वही लड़की है जिससे मिलने वो आया है बायोडाटा के हिसाब से वो लड़की के लिए और लड़की उसके लिए पूरी तरह से सही लग रहे थे...लेकिन अब उसे ऐसा नही लग रहा.. 
अरे कंघी तो कर लेती और क्या यही सबसे अच्छा कुरता है लड़की के पास... 
वो आज खुद तो अपनी सबसे बढ़िया शर्ट पहन कर आया है...
                             

"छाया....अब जतिन को अपने कमरे में ले जाओ दोनों एक दूसरे से जो पूछना हो पूछ लेना " अपनी माँ की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे छाया ने मुंह टेढ़ा सा किया हो

सब बड़े मजे से चाय नाश्ते का लुफ्त उठा रहे थे ऐसे हंस बोल रहे थे जैसे की रिश्ता तय ही हो गया हो।

जतिन चुपचाप छाया के पीछे पीछे चल पड़ा। छाया का कमरा देख उसे आश्चर्य हुआ। बड़े खुशनुमा से रंग बिखरे थे हर तरफ...
सामने छाया की बड़ी सी तस्वीर गुलाबी सूट में कितनी खूबसूरत दिख रही थी...

नजरें सामने करीने से रखी ढेर सी किताबों पर जा पडी।

"लगता है, आप को पढ़ने का बहुत शौक है....

जतिन का सवाल सुन कर छाया थोड़ा चिढ कर बोली

"क्यों नहीं होना चाहिए क्या ...

अब जतिन को थोड़ा गुस्सा आने को हुआ जाने खुद को क्या समझती है .... 
रोज नाश्ते में कौवे खाती है कया..

सोच कर उसके मुँह से हल्की सी हँसी फूटी...

छाया ने अचरज से जतिन को देखा....लड़का बड़ा अजीब है। बिना बात हँस रहा है।

"देखिये....बाहर चलते है बात क्या करनी है मैंने तो पापा मम्मी से यही कहना है कि मुझे लड़का ...
आई मीन रिश्ता पसंद नहीं है। "

छाया की बात सुनकर जतिन हैरान रह गया। फिर हँस कर बोला

"अब समझ आया कि आप झल्लों माई क्यों बन कर बैठीं है वैसे कौन है वो....

"वो ....कौन वो ....
अरे नहीं अफेय- वफेयर नहीं है। बैंक पी ओ की तैयारी कर रही हूँ। नौकरी लग जाने के बाद ही शादी करूँगी....

"तो फिर हमें बुलाया क्यों... 
पहले ही मना कर देना था ... जतिन ने थोड़ा रुखाई से पूछा।

"मना किया था। पर मौसी ने जिद पकड़ ली थी... 
बिलकुल राम -सीता की जोड़ी है कह कह कर, पापा मम्मी का पीछा छोड़ा ही नही... 
फिर पापा मम्मी मेरे पीछे पड़ गए। बस अब मना कर दूंगी और ये किस्सा ख़त्म ....

"चलो ठीक है पर मना करने का कारण क्या बताओगी ....

छाया सोच में डूब गयी।

"वैसे बुरा न मानो तो एक बात कहूँ...
तुम्हे पढ़ना ही है ना तो अभी बस सगाई कर लेते हैं और शादी एक साल बाद कर लेंगे...
एक साल में पास हो तो जाओगी ना....

"हो तो जाना चाहिए पर अगर एक साल में नहीं हो पायी तो....
फिर एक साल इन्तजार करेंगे क्या

"अब इन्तजार की तो हद होती है ना...
सो एक साल से ज्यादा इन्तजार तो नहीं कर सकता...
पर हाँ एक वादा कर सकता हूँ !"

"क्या....

"यही की अगर इस साल पास नहीं हो पाईं तो शादी के बाद घर का आधा काम तो कर ही दूंगा ताकि तुम आराम से पढ़ो और तसल्ली से पास हो बैंक अफसर बन जाओ। बस एक शर्त है...

"अब शर्त भी रखोगे ....

"हां.... बस दोबारा कभी ये मटमैला कुरता नहीं पहनना....
इसे तुरंत आज के आज फैंक देना

जतिन की बात सुन छाया जोरों से हँस पडी। जतिन भी हँसने लगा।

दोनों की हंसने की आवाजें बैठक तक पहुँची तो मौसी चहक कर बोली....

"देखा ना.... दोनों कितने खुश है...मैं ना कहती थी, दोनों बस एक दूजे के लिए ही बने है....

         ......Thanku for read......

Wednesday, June 17, 2020

" * तोहफा * "

                             तोहफा.....
                                      

आज सुबह ही सुधा का मन उदास हो चला था... कोरोना के कारण जन्मदिन भी नही मना सकते है...
ना कोई खरीददारी.....
ना बाहर खाना ना कोई पार्टी ,ना सजना ना सँवरना...
यूँ तो पतिदेव मोहनजी ने और बच्चो ने विश किया परंतु पूरा दिन सूना सूना सा लग रहा था... परिवार के बिना उदासी ही उदासी...
तभी मोबाइल बजा ,स्क्रीन पर भाभी जी की फोटो डिसप्ले हो रही थी...

" हैलो.... दीदी...हैप्पी बर्थडे ....
                                        
अब व्हाट्सएप खोल कर वीडियो देखो....
ये कया....भाभी जी अच्छी तरह से विश भी नही कर सकती....
मन सा मसोस कर सुधा ने वीडियो खोली ....
मधुर धुन के साथ उसके बचपन की तस्वीरे... 
उसके बाद परिवार के प्रत्येक सदस्य ने बारी बारी से उसके व्यक्तित्व की खूबसूरती पर चंद पंक्तियां बोली , फिर सभी ने ....
भाई-भाभी, मम्मी- पापा ,सास -ससुर, जेठ - जेठानी परिवार के सभी बच्चों ने मिलकर उसके लिए हैप्पी बर्थडे सोंग गाया ...
ये देखकर खुशी के आँसू आ गए... 
वीडियो एक बार ,दो बार , तीन बार देखा...
फिर फटाफट वीडियो काॅल लगाया ...
तो तीन घरों में केक मेज पर रखे हुए है....
सुधा भी घर में केक बनाया था जो पतिदेव मोहनजी ने मेज पर रख दिया....
अब सब जगह केक काटा जा रहा था और उसकी आँखों में प्यार के आँसू छलक आए ....
कितना सुखद अहसास होता है '''' 
हम घर में भले अकेले हैं ,लेकिन यदि हमारा परिवार हमें प्यार करता है तो जंगल में भी मंगल है....
उसका दिल किया , सबसे बहुत बहुत प्यार कर ले... सबको कृतज्ञता प्रकट करे....
और अपने व्यक्तित्व को और भी अच्छा गढ़ ले....
' प्रशंसा और प्यार ' से बढ़कर अमूल्य तोहफ़ा नहीं हो सकता है ....
ये उसने आज पहली बार महसूस किया ...
                                   

       .......Thanku for read....

Monday, June 15, 2020

" * आदत * "

   Meri kahaniya 
                               
                             *  आदत  *
                                         

 *  आज रागनी का फ़ोन आया था .....रात को खाना खाने के बाद मोहन बेड रूम में TV देख रहे थे। तो पत्नी सुधा ने उसे बताया ...."  अच्छा ...क्या कह रही थी ??...
 मोहन ने TV का वॉल्यूम कम करते हुए पूछा ....
वो कह रही थी कि कुछ दिनों के लिए आ जाओ ..दो साल हो गए है मिले हुए ...
उसके पोते के जन्मदिन पर गयी थी ,उसके बाद नही जा पाई अपनी बहन के पास ...
मम्मी पापा के देहांत के बाद मायके के नाम पर एक भाई और एक बहन है जब भी वो पंजाब जाती है तो दोनों से मिल आती है ....
मोहन ने तुरंत ही उसके अगले दिन की ट्रेन की बुकिंग भी करवा दी ।
सुधा ने चुटकी लेते हुए कहा ...मैंने तो युही जिक्र किया था ...आपने तो सचमुच बुकिंग भी करवा दी......
...बहुत जल्दी है मुझे भेजने की 😒....
अरे...मैने तो ये सोच कर बुक करवा दी कि तुम्हारा मन चेंज हो जाएगा और मायके भी घूम आओगी🙄..
..सचमुच भलाई का तो जमाना ही नहीं है ... मोहन ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा....

अच्छा तो सच में मेरी 15 दिनों की छुट्टी ... हाँ ..भाई जाओ जी लो अपनी जिंदगी .. मोहन बोला ,
मगर मन ही मन सोचने लगा 🤓 अब जमेगी रोज महफ़िल ..
..अब जिंदगी तो मैं जीऊंगा ......

इस बार सुधा को तो पंद्रह दिनों की छुट्टी मिल गई...दो तीन दिन भाई के पास रहकर बहन के पास आ गयी वहाँ सब खुश थे उसके आने पर ...
रोज नये-नये पकवान और रात देर तक बाते ..आज यह नई साड़ी खरीदी , नए गहने खरीदी से लेकर परिवार की सब समस्याओं पर ढेरों बाते... रोज़ शॉपिंग के लिये निकल जाते । 
छोटे शहरों में शॉपिंग का भी अलग मज़ा होता है......सुधा तो वहा जा कर बिज़ी हो गई मगर हर सुबह शाम मोहन का फोन आ जाता..."आज़ नाश्ते में आलू के परांठे बनाये ,लंच में पुलाव बनाया रात को भाटिया जी के यहां पैग लग रहें है कभी रात को चार दोस्तों की हमारे घर में महफ़िल चल रही है ... सब को पता था भाभी जी घर पर नही है ख़ूब मज़े हो रहे थे इनके तो ...
अभी बहन के घर में चार दिन भी नहीँ हुये थे कि मोहन का फोन आ गया ...
"सुधा....तुम्हारी शुक्रवार की टिकट बुक करवा दी है तुम आ जाओ ...
लेकिन मेरा तो पंद्रह दिन का प्रोग्राम था ...
मोहन के कहने से ही उसका मूड ऑफ हो गया लेकिन टिकट बुक थी वापिस आना पड़ा... 
नई दिल्ली के स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी पहुंची तो देखा मोहन उसे लेने आया हुआ था... ..
उसे देखकर वो इतना ख़ुश नज़र आ रहा था जैसे बरसो बाद उसने सुधा को देखा हो ...
कार ड्राइव करते हुये भी बड़े प्यार से उसे देख रहा था जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन की डोली ले जाते समय देखता है...
अब कभी नही भेजूंगा तुम्हें ...
तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नही लगता घर मे...

एक दो दिन तो आज़ादी सी लगती है मगर ....
तीसरे दिन ही घर की हर चीज़ में तुम्हारी कमी खलने लगती है तुम्हारे बिना जीने की कल्पना से ही काँप उठता हूँ दोपहर को लंच के लिये तुम्हारे फोन का इंतज़ार करने की ऐसी आदत थी कि बिना तुम्हारी कॉल के घर आने को मन नही करता था। एक दूसरे की इतनी आदत हो जाती है , इतने बरसों साथ रहते रहते कि एक के बिना दूसरा अधूरा सा लगता है ...
आज़ मैं पालक पनीर बना कर आया हूँ घर जाकर इकठ्ठे डिनर करेंगे "मोहन अपनी धुन में बोले जा रहा था और सुधा के कानों में मिश्री सी घुल रही थी... 
इतना बोलते तो कभी नही सुना था उस ने मोहन को..... इस एक हफ्ते की दूरी ने हम दोनों को कितना क़रीब कर दिया था....
                                          
..........Thanku for read.......👍

पुरुष का बलात्कार

आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटना...