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Monday, June 15, 2020

" * आदत * "

   Meri kahaniya 
                               
                             *  आदत  *
                                         

 *  आज रागनी का फ़ोन आया था .....रात को खाना खाने के बाद मोहन बेड रूम में TV देख रहे थे। तो पत्नी सुधा ने उसे बताया ...."  अच्छा ...क्या कह रही थी ??...
 मोहन ने TV का वॉल्यूम कम करते हुए पूछा ....
वो कह रही थी कि कुछ दिनों के लिए आ जाओ ..दो साल हो गए है मिले हुए ...
उसके पोते के जन्मदिन पर गयी थी ,उसके बाद नही जा पाई अपनी बहन के पास ...
मम्मी पापा के देहांत के बाद मायके के नाम पर एक भाई और एक बहन है जब भी वो पंजाब जाती है तो दोनों से मिल आती है ....
मोहन ने तुरंत ही उसके अगले दिन की ट्रेन की बुकिंग भी करवा दी ।
सुधा ने चुटकी लेते हुए कहा ...मैंने तो युही जिक्र किया था ...आपने तो सचमुच बुकिंग भी करवा दी......
...बहुत जल्दी है मुझे भेजने की 😒....
अरे...मैने तो ये सोच कर बुक करवा दी कि तुम्हारा मन चेंज हो जाएगा और मायके भी घूम आओगी🙄..
..सचमुच भलाई का तो जमाना ही नहीं है ... मोहन ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा....

अच्छा तो सच में मेरी 15 दिनों की छुट्टी ... हाँ ..भाई जाओ जी लो अपनी जिंदगी .. मोहन बोला ,
मगर मन ही मन सोचने लगा 🤓 अब जमेगी रोज महफ़िल ..
..अब जिंदगी तो मैं जीऊंगा ......

इस बार सुधा को तो पंद्रह दिनों की छुट्टी मिल गई...दो तीन दिन भाई के पास रहकर बहन के पास आ गयी वहाँ सब खुश थे उसके आने पर ...
रोज नये-नये पकवान और रात देर तक बाते ..आज यह नई साड़ी खरीदी , नए गहने खरीदी से लेकर परिवार की सब समस्याओं पर ढेरों बाते... रोज़ शॉपिंग के लिये निकल जाते । 
छोटे शहरों में शॉपिंग का भी अलग मज़ा होता है......सुधा तो वहा जा कर बिज़ी हो गई मगर हर सुबह शाम मोहन का फोन आ जाता..."आज़ नाश्ते में आलू के परांठे बनाये ,लंच में पुलाव बनाया रात को भाटिया जी के यहां पैग लग रहें है कभी रात को चार दोस्तों की हमारे घर में महफ़िल चल रही है ... सब को पता था भाभी जी घर पर नही है ख़ूब मज़े हो रहे थे इनके तो ...
अभी बहन के घर में चार दिन भी नहीँ हुये थे कि मोहन का फोन आ गया ...
"सुधा....तुम्हारी शुक्रवार की टिकट बुक करवा दी है तुम आ जाओ ...
लेकिन मेरा तो पंद्रह दिन का प्रोग्राम था ...
मोहन के कहने से ही उसका मूड ऑफ हो गया लेकिन टिकट बुक थी वापिस आना पड़ा... 
नई दिल्ली के स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी पहुंची तो देखा मोहन उसे लेने आया हुआ था... ..
उसे देखकर वो इतना ख़ुश नज़र आ रहा था जैसे बरसो बाद उसने सुधा को देखा हो ...
कार ड्राइव करते हुये भी बड़े प्यार से उसे देख रहा था जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन की डोली ले जाते समय देखता है...
अब कभी नही भेजूंगा तुम्हें ...
तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नही लगता घर मे...

एक दो दिन तो आज़ादी सी लगती है मगर ....
तीसरे दिन ही घर की हर चीज़ में तुम्हारी कमी खलने लगती है तुम्हारे बिना जीने की कल्पना से ही काँप उठता हूँ दोपहर को लंच के लिये तुम्हारे फोन का इंतज़ार करने की ऐसी आदत थी कि बिना तुम्हारी कॉल के घर आने को मन नही करता था। एक दूसरे की इतनी आदत हो जाती है , इतने बरसों साथ रहते रहते कि एक के बिना दूसरा अधूरा सा लगता है ...
आज़ मैं पालक पनीर बना कर आया हूँ घर जाकर इकठ्ठे डिनर करेंगे "मोहन अपनी धुन में बोले जा रहा था और सुधा के कानों में मिश्री सी घुल रही थी... 
इतना बोलते तो कभी नही सुना था उस ने मोहन को..... इस एक हफ्ते की दूरी ने हम दोनों को कितना क़रीब कर दिया था....
                                          
..........Thanku for read.......👍

1 comment:

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