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Tuesday, August 4, 2020

! बंधन निःस्वार्थ !

"निस्वार्थ प्रेम ...


शिवम् अपनी बहन से बोला - दीदी....इस बार मे काफी बुरे वक्त से गुजरा हूं ये कोरोना बीमारी की वजह से हुआ लाँकडाऊन .......नौकरी भी नही रही ....
जैसे तैसे सब्जियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं इसलिए इसबार मे केवल तुम्हें इक्यावन ( 51 ) रू ही दे पाऊंगा.....
दीदी - अच्छा.... यदि तुम मुझे केवल इक्यावन रू दोगे तो मे भी इसबार कागज की राखी बांधूगी ....
और मिठाई की जगह खीर बनाकर लाऊंगी.....
कहकर दीदी चली गई .....
शिवम् की पत्नी भावना- देखा शिवमजी.....दीदी.बस पैसों के लिए आपको राखी बांधती है कोई प्यार या स्नेह के लिए नही....
शिवम् - नही भावना ....ऐसा नही है ...दीदी मुझे बचपन से स्नेह करती है ममता करती है मां जैसे......
हूं..... करते भावना अंदर चली गई....
अगले दिन राखी पर....
दीदी आई सचमुच मिठाई की जगह खीर बनाकर लाई एक थैले मे सचमुच कागज की राखी बनाकर लाई थी...
ये देखकर भावना मुस्कुरा रही थी....
दीदी ने तिलक किया खीर से शिवम् का मुंह मीठा करवाया राखी बांधी और शगुन के इक्यावन रु लेकर माथे से लगाकर खुशी से चली गई ....
कुछ देर मे  शिवानी ने पापा के हाथों से राखी को हंसते खेलते खींचा .....
हे ....ये कया .....राखी दो दो हजार के पांच नोटों से बनाई हुई थी साथ मे एकबात उस कागज पर लिखी हुई थी जिसमें दो दो हजार के नोट थे ....
शिवम् ...मेरे भाई ...ये प्यार और आपसी संम्बधो को मजबूत करने वाला त्यौहार है लेनदेन का नही ....
और ये पैसे कोई उपहार या लेनदेन के लिए नही बल्कि एक साथ खडी बहन का आशिर्वाद है ...जब सुख के दिन नही रहे तो यकीन मान दुख के भी नही रहेंगे ....
हम भाई बहनों का प्यार निस्वार्थ होता है ...
सदा खुश रहो.....
अब शिवानी की आँखों  में भी खुशी के आँसु थे मगर भावना शर्मिंदगी से सर झुकाये खड़ी थी ....वो भी भाई बहन के निस्वार्थ प्रेम के आगे नतमस्तक थी....

Happy Raksha bandhan...... 

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