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Monday, December 21, 2020

||। कोर्ट पैंट ||

कोट पैंट.....
अपनी पहली तनख्वाह मिलते ही राजू ने पिताजी के लिए नया कोट पेंट खरीदा और सीधा पहुंच गया स्टेशन रोड पर स्थित उनकी छोटी-सी चाय की दुकान पर... उसने कोट पेंट खरीदने के बाद बचे लगभग बीस हजार रुपये लिफाफे में भरकर रख लिए थे... दुकान पर पहुँचते ही सबसे पहले पिताजी के चरण स्पर्श कर बोला...पापा..., ये कोट पेंट आपके लिए... और ये मेरी सेलरी के बचे हुए पैसे.... आँखें भर आई सुरेंद्र जी की... इस दिन के लिए उन्होंने पिछले बीस साल से क्या कुछ नहीं किए था... काश ....उसकी मां भी ये दिन देख पाती...जो पंद्रह साल पहले ही एक दुर्घटना में गुजर गई थी... छलकने को आतुर आँसुओं को रोकते हुए सुरेन्द्र जी बोले ...."ये क्या राजू.... मेरे लिए नये कोट पेंट की क्या जरूरत थी .... अपने लिए कुछ ढंग के कपड़े लिए होते...मेरा क्या है मैं तो दुकान पर कुछ भी पहनकर काम चला लेता हूं लेकिन तुम तो स्कूल में टीचर हो गए हो ... ढंग के कपड़े तो तुम्हारे पास होने चाहिए और ये पैसे, बेटा....अब ये अपने पास ही रखो... नही पापा.... ये महज कोई कोट पेंट नही है.... मेरा सपना है जो बचपन से ही देखता था जब आप कड़ाके की ठंड में भी सुबह - सुबह फटी बनियान और शॉल ओढ़कर दुकान खोलते और देर रात तक उसी हाल में रहते... तो मैं स्कूल आते-जाते अकसर सोचता कि बड़ा होकर जब कमाने लगूंगा, तो सबसे पहले आपके लिए कोट पेंट खरीदूंगा... और बाकी के पैसे तो आपके पास ही रहेंगे, मैं आपसे माँग लिया करूंगा पहले की तरह.... सुरेंद्र जी ने बेटे को गले से लगा लिया ...आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी थीं। दुकान पर बैठे ग्राहक भी पिता-पुत्र की बातें सुनकर भावुक हो उठे थे....

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