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Thursday, April 20, 2023

पुरुष का बलात्कार

आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटनाओं पर कानून बना रहे है पर कुछ लड़कीया इन्ही कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की जिंदगी बर्बाद कर देती है । और ये हमारा कानून बिना पूरा जांच पड़ताल किए सिर्फ चंद पैसे के लिए किसी की जिंदगी खत्म कर देता है । तो चलिए शुरू करते है आज की कहानी ये कहानी काल्पनिक है .. पुरुष का बलात्कार मेरी पूर्व प्रेमिका ने मेरे खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया। धारा 376 के तहत एक पुरुष को जमानत नहीं दी जा सकती है अगर महिला उस व्यक्ति को उसके बलात्कारी होने की गवाही देती है। आकांक्षाओं वाले एक सामान्य लड़के की तरह, मैं अपने अगली कहानी के बारे में सपना देख रहा था, अपने अगले कहानी के विचारों के बारे में चिंतित था, अपनी अगली इंस्टाग्राम तस्वीर के कैप्शन को गढ़ रहा था - जब मैंने दरवाजे की घंटी सुनी। दो अधेड़ उम्र के पुलिसकर्मी मेरे सामने खड़े थे, मेरे सामने कभी कोई पुलिस वाला हमारे घर में नहीं आया था। सब-इंस्पेक्टर "दीक्षित" और हेड कांस्टेबल "भाटिया" - ने अचानक मुझे मारपीट और बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। मेरे परिवार ने पुलिसकर्मियों, वकीलों, जजों का चक्कर लगाया और राजनेताओं से संपर्क किया। एक जमानत वह सब है जो वे मांग रहे थे। - माफ़ करना! यह गैर जमानती अपराध है। किसी ने भी उसके बयान को बदनाम करने वाला नहीं माना। - उनके एक बयान ने मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। इसके कारण मुझे क्या झेलना पड़ा? मेरे जीवन में एक बार भी, मेरे आदर्श पिता ने किसी से भी विनती नहीं की, लेकिन उन्होंने किया। मेरी कोमल-हृदय माँ कभी समाज की आँखों के सामने शर्मिंदा नहीं हुई लेकिन उसने किया। मेरे अंतर्मुखी भाई ने कभी किसी से लड़ाई नहीं की। लेकिन उसने किया। दीक्षित, जो यह भी नहीं जानता कि स्मार्टफोन कैसे चलाना है, ने इसे जब्त कर लिया, जिसमें मेरी बेगुनाही के लिए आवश्यक सबूत थे। उसने मुझे प्रताड़ित किया, मुझे कई चोटें दीं, मुझे 100 से अधिक बार थप्पड़ मारा कि मेरा पूरा चेहरा सूज गया था ... मेरी चीखें, चीख-पुकार, और मिन्नतें रात भर मुझ पर बरसती उनकी बांस की डंडियों के खिलाफ अनसुनी हो गईं। मेरा जीवन बर्बाद हो गया, आत्म-सम्मान टूट गया, आत्मविश्वास कुचल गया और मेरे सपने जल गए। कुल मिलाकर मैं समाप्त हो गया था। दीक्षित को पता था कि मैं शुरू से ही बेकसूर हूं। वह जानता था कि मैं पीड़ित हूं लेकिन उसने सारी हदें पार कर दी जब उसने मेरी जमानत के बदले मेरे माता-पिता से 10 लाख मांगे। यह तो बस अंत की शुरुआत थी। 3 महीने के दिल दहला देने वाले संघर्ष के बाद, हमने केस जीत लिया। अदालत ने मुझे दोषी नहीं ठहराया और मुझे रिहा कर दिया गया, जबकि किसी ने भी ध्यान नहीं दिया कि असली ऋषभ डांग जो अपने साथ कई सपनों को संजोकर रखा था पहले ही पुलिस हिरासत में मर चुका था। लेकिन असली दोषियों को सजा कौन देगा! - "वह लड़की और दीक्षित" संविधान में आस्था? ईश्वर पर भरोसा? कर्म में आस्था? हर बार जब मैं अपना फोन पकड़ता हूं तो मेरे हाथ कांप जाते हैं, खाकी में एक आदमी को देखकर मेरा दिमाग पिघल जाता है। अपने घर की घण्टी सुनकर मैं छिप जाता हूँ। यह मुझे मेरे सपनों में सताता है। हर रात मुझे और मेरे परिवार पर जो अत्याचार हुए, वे मुझे सोने नहीं देते। दो दिन बाद मैं पीली बाइक के सामने खड़ा था। दीक्षित मोटा पेट लिए उस पर बैठा था। उसके मुस्कुराते हुए चेहरे ने मेरे अंदर के उस बचे हुए दिल को मिटा दिया और मैंने बिना कुछ सोचे समझे हाथ में धारदार चाकू से उसकी गर्दन काट दी। वहाँ से सीधे, मैं अपने पूर्व प्रमिका के पास गया, उसने मेरे और मेरे परिवार के साथ जो किया उसके लिए उसे पछतावा हुआ। उसके रोते हुए चेहरे ने मुझे पिघला दिया, पता नहीं कैसे, यह माँ की परवरिश थी या सिर्फ मेरा बेदाग दिल। मैंने चाकू को एक तरफ फेंक दिया और दीक्षित का सारा खून अपने हाथों पर से, उसके चेहरे पर लगा दिया, जिससे वह लाल हो गई। अंत में - वह लाल और गीली थी ... और मुझे पुरी तरह बरबाद कर दिया गया था। आज मुझे मिली सबसे अच्छी बात? मोक्ष। उपरोक्त पाठ कला का एक काल्पनिक (बहुत छोटा) कलाकृति है, जो हर दिन हजारों पुरुषों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकता और दुर्व्यवहार को प्रदर्शित करने के लिए अंकित है। आपने इसे मेरी कहानी के रूप में पढ़ा - शायद यह मेरे जैसे कई लोगों की है जो आपके लिए अजनबी हैं। अगर आपको लगा हो तो मुझे कमेंट में बताएं। ।।।।।।।।।

Monday, January 4, 2021

// Sathi //

ज़िन्दगी की शाम ढलने को है, किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गई, वह बड़बड़ाते घर से बाहर निकला , सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा, पता नहीं समझती क्या है खुद को? जब देखो झगड़ा, सुकून से रहने नहीं देती, नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया. आवाज सुनाई दी - इतनी सर्दी में बाहर चाय पी रहे हो? उसने गर्दन घुमा कर देखा तो साथ के स्टूल पर बैठे बुजुर्ग उससे मुख़ातिब थे. आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं. बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा मैं निपट अकेला, न कोई गृहस्थी, न साथी, तुम तो शादीशुदा लगते हो. पत्नी घर में जीने नहीं देती, हर समय चिकचिक,बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ. गर्म चाय के घूँट अंदर जाते ही दिल की कड़वाहट निकल पड़ी. बुजुर्ग-: पत्नी जीने नहीं देती! बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है. 8 बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए, जब ज़िंदा थी, कभी कद्र नहीं की, आज कम्बख़्त चली गयी तो भूलाई नहीं जाती, घर काटने को होता है, बच्चे अपने अपने काम में मस्त, आलीशान घर, धन दौलत सब है पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं, यूँ ही कभी कहीं, कभी कहीं भटकता रहता हूँ. कुछ अच्छा नहीं लगता, उसके जाने के बाद, पता चला वो धड़कन थी मेरे जीवन की ही नहीं मेरे घर की भी. सब बेजान हो गया है, बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर था. उसने चाय वाले को पैसे दिए, नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा, एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया. दूर से देख लिया था, डबडबाई आँखो से निहार रही पत्नी चिंतित दरवाजे पर ही खड़ी थी. कहाँ चले गए थे, जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो ? तुम भी तो बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो, कुछ यूँ...दोनों ने आँखों से एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया.... .if you like our storiy do follow for more .

Tuesday, December 22, 2020

// मां //

।। मां ।।
मां...... बेटे के जन्मदिन पर ..... रात के 1:30 बजे फोन आता है बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है...."जन्म दिन मुबारक लल्ला" बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है - सुबह फोन करती... इतनी रात को नींद खराब क्यों की...कह कर गुस्से मे फोन रख देता है थोडी देर बाद पिता का फोन आता है...हालांकि बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता पर बात को संभालने के लिए कहता है - सुबह फोन करती मां ये कोई वक्त है पागलों के जैसे रात को.... ..वो पापा नींद खराब हो गई ... पिता ने कहा - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है की सचमुच तुम्हारी मां पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया.... और बेटा वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया... रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था... तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था भराई सी आवाज मे इतना कहके पिता फोन रख दिया.... बेटा सुन्न हो जाता है उसे बाकी सारी रात नींद नहीं आती वो भोर होते ही मां के घर जा कर मां के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब मां कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया.... फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो ... मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखूंगा.... तब माँ कहती है- माफ कर दो बेटा है.... दोस्तो सब जानते हैं दुनिया में एक मां ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी पिता अगर तमाचा ना मारे तो बेटा सर पर बैठ जाए इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए उन्हें प्यार दीजिए... मां की ममता तो अनमोल है.... निवेदन:- इसको पढ़ कर अगर आँखों में आंसू बहने लगें तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये .... मन हल्का हो जायेगा
🌴 भगवान से बढ़कर माता पिता होते हैं 🌴 🌴🌲 दोस्तो कृपया इनका आदर और ख्याल रखिए🌲🌴 अगर कहानी अच्छी लग रही है ।।। 👍🤗 तो शेयर भी कर दीजिए धन्यवाद।।

Monday, December 21, 2020

||। कोर्ट पैंट ||

कोट पैंट.....
अपनी पहली तनख्वाह मिलते ही राजू ने पिताजी के लिए नया कोट पेंट खरीदा और सीधा पहुंच गया स्टेशन रोड पर स्थित उनकी छोटी-सी चाय की दुकान पर... उसने कोट पेंट खरीदने के बाद बचे लगभग बीस हजार रुपये लिफाफे में भरकर रख लिए थे... दुकान पर पहुँचते ही सबसे पहले पिताजी के चरण स्पर्श कर बोला...पापा..., ये कोट पेंट आपके लिए... और ये मेरी सेलरी के बचे हुए पैसे.... आँखें भर आई सुरेंद्र जी की... इस दिन के लिए उन्होंने पिछले बीस साल से क्या कुछ नहीं किए था... काश ....उसकी मां भी ये दिन देख पाती...जो पंद्रह साल पहले ही एक दुर्घटना में गुजर गई थी... छलकने को आतुर आँसुओं को रोकते हुए सुरेन्द्र जी बोले ...."ये क्या राजू.... मेरे लिए नये कोट पेंट की क्या जरूरत थी .... अपने लिए कुछ ढंग के कपड़े लिए होते...मेरा क्या है मैं तो दुकान पर कुछ भी पहनकर काम चला लेता हूं लेकिन तुम तो स्कूल में टीचर हो गए हो ... ढंग के कपड़े तो तुम्हारे पास होने चाहिए और ये पैसे, बेटा....अब ये अपने पास ही रखो... नही पापा.... ये महज कोई कोट पेंट नही है.... मेरा सपना है जो बचपन से ही देखता था जब आप कड़ाके की ठंड में भी सुबह - सुबह फटी बनियान और शॉल ओढ़कर दुकान खोलते और देर रात तक उसी हाल में रहते... तो मैं स्कूल आते-जाते अकसर सोचता कि बड़ा होकर जब कमाने लगूंगा, तो सबसे पहले आपके लिए कोट पेंट खरीदूंगा... और बाकी के पैसे तो आपके पास ही रहेंगे, मैं आपसे माँग लिया करूंगा पहले की तरह.... सुरेंद्र जी ने बेटे को गले से लगा लिया ...आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी थीं। दुकान पर बैठे ग्राहक भी पिता-पुत्र की बातें सुनकर भावुक हो उठे थे....

Tuesday, August 4, 2020

! बंधन निःस्वार्थ !

"निस्वार्थ प्रेम ...


शिवम् अपनी बहन से बोला - दीदी....इस बार मे काफी बुरे वक्त से गुजरा हूं ये कोरोना बीमारी की वजह से हुआ लाँकडाऊन .......नौकरी भी नही रही ....
जैसे तैसे सब्जियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं इसलिए इसबार मे केवल तुम्हें इक्यावन ( 51 ) रू ही दे पाऊंगा.....
दीदी - अच्छा.... यदि तुम मुझे केवल इक्यावन रू दोगे तो मे भी इसबार कागज की राखी बांधूगी ....
और मिठाई की जगह खीर बनाकर लाऊंगी.....
कहकर दीदी चली गई .....
शिवम् की पत्नी भावना- देखा शिवमजी.....दीदी.बस पैसों के लिए आपको राखी बांधती है कोई प्यार या स्नेह के लिए नही....
शिवम् - नही भावना ....ऐसा नही है ...दीदी मुझे बचपन से स्नेह करती है ममता करती है मां जैसे......
हूं..... करते भावना अंदर चली गई....
अगले दिन राखी पर....
दीदी आई सचमुच मिठाई की जगह खीर बनाकर लाई एक थैले मे सचमुच कागज की राखी बनाकर लाई थी...
ये देखकर भावना मुस्कुरा रही थी....
दीदी ने तिलक किया खीर से शिवम् का मुंह मीठा करवाया राखी बांधी और शगुन के इक्यावन रु लेकर माथे से लगाकर खुशी से चली गई ....
कुछ देर मे  शिवानी ने पापा के हाथों से राखी को हंसते खेलते खींचा .....
हे ....ये कया .....राखी दो दो हजार के पांच नोटों से बनाई हुई थी साथ मे एकबात उस कागज पर लिखी हुई थी जिसमें दो दो हजार के नोट थे ....
शिवम् ...मेरे भाई ...ये प्यार और आपसी संम्बधो को मजबूत करने वाला त्यौहार है लेनदेन का नही ....
और ये पैसे कोई उपहार या लेनदेन के लिए नही बल्कि एक साथ खडी बहन का आशिर्वाद है ...जब सुख के दिन नही रहे तो यकीन मान दुख के भी नही रहेंगे ....
हम भाई बहनों का प्यार निस्वार्थ होता है ...
सदा खुश रहो.....
अब शिवानी की आँखों  में भी खुशी के आँसु थे मगर भावना शर्मिंदगी से सर झुकाये खड़ी थी ....वो भी भाई बहन के निस्वार्थ प्रेम के आगे नतमस्तक थी....

Happy Raksha bandhan...... 

Monday, July 20, 2020

! "*आर्मी मैन पार्ट - 4 *" !

Hello,

Yaha mene ek Aur Intresting Story Army Man Part - 4 hindi kahaniyon post ki hai. asha karta hu ki apko Army man ki ye hindi kahaniya ki series jarur pasand ayengi.


फौजी.....



....शिवम् को एक और चिंता थी....
अगर वह 3 महीने बाद फिर से छुट्टी पर आता है, तो अपने बच्चे के जन्म के समय भावना के पास नहीं रह पाएगा.... इस का मतलब उसे बीच में छुट्टी लेने से बचना होगा तभी 2 महीनों की इकट्ठी छुट्टी ले पाएगा. यही सब सोच कर वह और परेशान हो जाता. ऐसे हालात में वह बीच के पूरे 5 महीनों तक भावना को देख नहीं पाएगा. वह जिस जगह पर है वहां भावना को किसी भी हालत में ले जाना असंभव है. फिर इस हालत में तो उस का सफर करना वैसे भी ठीक नहीं है, और वह भी इतनी दूर. एक पुरुष अपने प्यार और फर्ज के बीच कितना बेबस, कितना लाचार हो जाता है....
छुट्टी के आखिरी दिन वह सुबह भावना को डाक्टर के यहां ले गया. उस का चैकअप करवाया. सब नौर्मल था. घर आ कर उस ने पैकिंग की. इस बार अपनी पैकिंग के साथ ही उसे भावना के सामान की भी पैकिग करनी पड़ी... क्योंकि अब वह भावना को अकेला नहीं रख सकता....
उसे उस के मातापिता के घर पहुंचा कर जाएगा... सामान बैग में भरते हुए उस ने कमरे पर नजर डाली. अब पता नहीं कितने महीनों तक वह अपने घर, अपने कमरे में नहीं रह पाएगा. उस की आंखें भीग गई उस ने चुपचाप शर्ट की बांह से आंखें पोंछ लीं...
‘‘क्या हुआ जी....’ भावना ने तड़प कर पूछा....
‘‘कुछ नहीं....शिवम् ने भरे गले से जवाब दिया....
‘‘इधर आओ मेरे पास...’’ भावना ने उसे अपने पास बुलाया और फिर उस का सिर अपने सीने पर रख कर उस के बाल सहलाने लगी...
शिवम् बच्चों की तरह बिलख कर रो पड़ा....
‘‘यह क्या… ऐसे दिल छोटा नहीं करते....
ये दिन भी बीत जाएंगे जी...भावना उसे दिलासा देती रही...
वापस जाते हुए शिवम् ने एक भरपूर नजर अपने घर को देखा और फिर भावना के साथ कार में बैठ गया....
भावना के पिता का ड्राइवर उसे बस स्टैंड पहुंचाने आया था. वही वापसी में भावना को अपने माता पिता के घर पहुंचा देगा....
बसस्टैंड पहुंच कर शिवम् ने अपना सामान निकाला और बस में चढ़ा दिया. वह चेहरे पर भरसक मुसकराहट ला कर भावना से बात कर रहा था औैर उसे तसल्ली दे रहा था...भावना अलबत्ता लगातार आंसू पोंछती जा रही थी. लेकिन शिवम् तो पुरुष था ना... जिसे प्रकृति ने खुल कर रोने और अपना दर्द व्यक्त करने का भी अधिकार नहीं दिया है.....
कोई नहीं समझ सकता कि कुछ क्षणों में एक पुरुष कितना असहाय हो जाता है....
कितना टूट जाता है अंदर से जब दिल दर्द से तार तार हो रहा होता है और ऊपर से आप को मुसकराना पड़ता है, क्योंकि आप पुरुष हैं जो पौरुषेय और भावनात्मक मजबूती व स्थिरता का प्रतीक है....
रोना आप को शोभा नहीं देता शिवम् भी भावना को समझाता, सहलाता खड़ा रहा...
बस चलने को हुई बस ड्राइवर ने ऊपर चढ़ने का इशारा किया. तब शिवम् ने भावना को गले लगाया और तुरंत पलट कर बस में चढ़ गया. सीट पर बैठ कर वह भावना को तब तक बाय करता रहा जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.....
शिवम् ने अपना मोबाइल निकाला.... मोबाइल के पारदर्शी कवर के अंदर एक छोटी सी रंगीन नग जड़ी बिंदी थी.... जो भावना के माथे से निकल कर ना जाने कब रात में तकिए पर चिपक गई थी.... शिवम् ने उसे मन से सहेज कर अपने मोबाइल के कवर के अंदर चिपका लिया था...
अब यही उस के साथ बिताई यादों का खजाना था जो अगल 3-4 या ना जाने कितने महीनों तक उसे संबल देता रहेगा....
रात के अंधेरे में अब कोई उस की कमजोरी देखने वाला नहीं था एक पुरुष को रोते देख कर आश्चर्य करने या हंसने वाला कोई नहीं था....
अब वह खुल कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता था. जी भर कर रो सकता था… शिवम् मोबाइल कवर के अंदर से झांकती भावना की बिंदी पर माथा रख कर बेआवाज रोने लगा… आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे..

...dosto ye kahani to yhi samapt ho rahi... par ye kahani koi jhut nhi har fouji ki hai desh or parivar ko apni jaan se jada pyar karna.... in fouji se jada koi ni kar sakta...

अपनी पत्नी से विदा ले कर एक फौजी ने वापस उस दुनिया के लिए यात्रा शुरू कर दी जहां कदम कदम पर सिर पर मौत मंडराती है....
जहां से उसे नहीं पता कि वह कभी वापस आ कर पत्नी और बच्चे को कभी देख भी पाएगा या नहीं....
बस हर पल जेब में सिंदूर की डिबिया रखे वह कुदरत से कामना करता रहता है कि बस इस बिंदी और उस अजन्मे बच्चे की खातिर उसे वापस भेज देना.....
दोस्तों यही है हमारे एक एक वीर फौजी भाई की जीवनगाथा..... ऐसे ही त्याग और बलिदान के लिए सदैव तत्पर रहनेवाले सभी फौजी भाइयों को मेरा सेल्यूट
जय हिंद

Friday, July 17, 2020

! * आर्मी मैन पार्ट - 3 * !

Hello, 

Yaha mene ek Aur Intresting Story di jo ki Army man ki life ke upar based hai ye hindi kahaniyon me se ek hai. asha karta hu ki apko Army man  ki ye hindi kahaniya jarur pasand ayengi.


फौजी....

काश.....जीवन ऐसा ही होता शांत, सुव्यवस्थित, निश्चिंत. बस वह भावना, उन का बच्चा और घर.... 
रात में नीचे किचन में जा कर शिवम् अपने लिए कौफी और भावना के लिए दूध ले आया....
‘‘वहां भी ड्यूटी यहां भी ड्यूटी… आप को तो कही पर आराम नहीं हैँ..... 
वहां से इतना थक कर आए हैं और यहां भी चैन नहीं है,’’ .. भावना दूध का गिलास लेते हुए बोली....
‘‘इस ड्यूटी के लिए तो कब से तरस रहा था....
भला तेरे लिए कुछ करने में मुझे थकान लग सकती है क्या...शिवम् प्यार से बोला....
‘‘इतना चाहते हो मुझे....भावना विह्वल स्वर में बोली....
‘‘तू मेरी सांस है. तेरे प्यार के सहारे ही तो जी रहा हूं,...शिवम् बोला. ...
सुबह उठते ही शिवम् ने भावना से पूछा..
‘‘क्या खाएगा मेरा बच्चा आज...’
‘‘कौर्नफ्लैक्स....भावना बोली.’’
शिवम् ने फटाफट दूध गरम कर उस में बादाम, पिस्ता डाल कर कौर्नफ्लैक्स तैयार कर के चाय की ट्रे के साथ बाहर बगीचे में ले आया....
दोनों झूले पर बैठ गए.... सुबह की ठंडी हवा चल रही थी सामने सूरजमुखी के पीले फूलों वाला टी सैट था...
साथ में भावना थी और वह पैरा कमांडो जो रातदिन देश की सुरक्षा की खातिर आतंकवादियों का पीछा करते मौत से जान की बाजी खेलता रहता,... आज की खुशनुमा सुबह अपने घर पर था. दोपहर का खाना दोनों ने मिल कर बनाया.... छुट्टियों में भावना के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने के उद्देश्य से शिवम् दोनों समय खाना बनाने में उस की मदद करता. बीच में बिरहा के बादल छंट जाते और प्यार की कुनकुनी धूप दोनों के बीच खिली रहती. दोपहर में वह उसे कोई कौमेडी फिल्म दिखाता, वही उस की पसंद के फल काट कर खिलाता. फिर खाना भी अपने हाथ से परोसता....
‘‘अरे मैं नीचे आ जाती ना…. आप ऊपर क्यों ले आए खाना... 
कितने चक्कर लगाओगे...’’ भावना बोली....
‘‘तुम्हारे लिए अभी बारबार सीढि़यां चढ़ना उतरना ठीक नहीं है... इसलिए मैं खाना ऊपर ही ले आया..
’’शिवम् ने थाली में खाना परोसते हुए बोला...
‘‘लीजिए....आप का पति आप की सेवा में हाजिर है....
‘‘कितनी सेवा करोगे जी...
‘हम तो सेवा करने के लिए ही पैदा हुए हैं जी... 
ड्यूटी पर भारत माता की सेवा करते हैं और छुट्टी में पत्नी की....’ शिवम् भावना को एक कौर खिलाते हुए बोला.
बीच बीच में शिवम् अपनी पोस्टिंग की जगह भी फोन कर वहां के हालचाल पता करता रहता....
आखिर वह एक फौजी था और फौजी कभी छुट्टी पर नहीं होता....
हर बार पोस्टिंग की जगह से फोन आने पर उस का दिल डूबने लगता कि कहीं वापस तो नहीं बुला रहे… 
कहीं किसी इमरजैंसी के चलते छुट्टी कैंसिल तो नहीं हो गई. कुल 22-23 दिन वह भावना के साथ रह पाता है, उस में भी हर पल मन धड़कता रहता कि कहीं छुट्टी कैंसिल ना हो जाए, क्योंकि पैरा कमांडो होने के कारण उस की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा थीं.....
शिवम् की छुट्टियां खत्म होने को थी अब रोज रात को वह अफसोस से भर जाता कि भावना  के साथ का एक और दिन ढल गया.... ऐसे ही दिन सरकते गए...
शिवम् रात में गैलरी में खड़ा सोचता रहता कि इस बार भावना को छोड़ कर जाना जानलेवा हो जाएगा. वह इस दौर में पूरा समय भावना के साथ रहना चाहता था....
अपने बच्चे के विकास को महसूस करना चाहता था इस बार सच में उस का जरा भी मन नहीं हो रहा था जाने का.... उस ने मन ही मन कामना की कि कम से कम अगली पोस्टिंग ऐसी जगह हो कि वह 2 साल तो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह पाएं.......

To be continued....... 


जय हिंद



पुरुष का बलात्कार

आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटना...