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Thursday, April 20, 2023

पुरुष का बलात्कार

आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटनाओं पर कानून बना रहे है पर कुछ लड़कीया इन्ही कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की जिंदगी बर्बाद कर देती है । और ये हमारा कानून बिना पूरा जांच पड़ताल किए सिर्फ चंद पैसे के लिए किसी की जिंदगी खत्म कर देता है । तो चलिए शुरू करते है आज की कहानी ये कहानी काल्पनिक है .. पुरुष का बलात्कार मेरी पूर्व प्रेमिका ने मेरे खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया। धारा 376 के तहत एक पुरुष को जमानत नहीं दी जा सकती है अगर महिला उस व्यक्ति को उसके बलात्कारी होने की गवाही देती है। आकांक्षाओं वाले एक सामान्य लड़के की तरह, मैं अपने अगली कहानी के बारे में सपना देख रहा था, अपने अगले कहानी के विचारों के बारे में चिंतित था, अपनी अगली इंस्टाग्राम तस्वीर के कैप्शन को गढ़ रहा था - जब मैंने दरवाजे की घंटी सुनी। दो अधेड़ उम्र के पुलिसकर्मी मेरे सामने खड़े थे, मेरे सामने कभी कोई पुलिस वाला हमारे घर में नहीं आया था। सब-इंस्पेक्टर "दीक्षित" और हेड कांस्टेबल "भाटिया" - ने अचानक मुझे मारपीट और बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। मेरे परिवार ने पुलिसकर्मियों, वकीलों, जजों का चक्कर लगाया और राजनेताओं से संपर्क किया। एक जमानत वह सब है जो वे मांग रहे थे। - माफ़ करना! यह गैर जमानती अपराध है। किसी ने भी उसके बयान को बदनाम करने वाला नहीं माना। - उनके एक बयान ने मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। इसके कारण मुझे क्या झेलना पड़ा? मेरे जीवन में एक बार भी, मेरे आदर्श पिता ने किसी से भी विनती नहीं की, लेकिन उन्होंने किया। मेरी कोमल-हृदय माँ कभी समाज की आँखों के सामने शर्मिंदा नहीं हुई लेकिन उसने किया। मेरे अंतर्मुखी भाई ने कभी किसी से लड़ाई नहीं की। लेकिन उसने किया। दीक्षित, जो यह भी नहीं जानता कि स्मार्टफोन कैसे चलाना है, ने इसे जब्त कर लिया, जिसमें मेरी बेगुनाही के लिए आवश्यक सबूत थे। उसने मुझे प्रताड़ित किया, मुझे कई चोटें दीं, मुझे 100 से अधिक बार थप्पड़ मारा कि मेरा पूरा चेहरा सूज गया था ... मेरी चीखें, चीख-पुकार, और मिन्नतें रात भर मुझ पर बरसती उनकी बांस की डंडियों के खिलाफ अनसुनी हो गईं। मेरा जीवन बर्बाद हो गया, आत्म-सम्मान टूट गया, आत्मविश्वास कुचल गया और मेरे सपने जल गए। कुल मिलाकर मैं समाप्त हो गया था। दीक्षित को पता था कि मैं शुरू से ही बेकसूर हूं। वह जानता था कि मैं पीड़ित हूं लेकिन उसने सारी हदें पार कर दी जब उसने मेरी जमानत के बदले मेरे माता-पिता से 10 लाख मांगे। यह तो बस अंत की शुरुआत थी। 3 महीने के दिल दहला देने वाले संघर्ष के बाद, हमने केस जीत लिया। अदालत ने मुझे दोषी नहीं ठहराया और मुझे रिहा कर दिया गया, जबकि किसी ने भी ध्यान नहीं दिया कि असली ऋषभ डांग जो अपने साथ कई सपनों को संजोकर रखा था पहले ही पुलिस हिरासत में मर चुका था। लेकिन असली दोषियों को सजा कौन देगा! - "वह लड़की और दीक्षित" संविधान में आस्था? ईश्वर पर भरोसा? कर्म में आस्था? हर बार जब मैं अपना फोन पकड़ता हूं तो मेरे हाथ कांप जाते हैं, खाकी में एक आदमी को देखकर मेरा दिमाग पिघल जाता है। अपने घर की घण्टी सुनकर मैं छिप जाता हूँ। यह मुझे मेरे सपनों में सताता है। हर रात मुझे और मेरे परिवार पर जो अत्याचार हुए, वे मुझे सोने नहीं देते। दो दिन बाद मैं पीली बाइक के सामने खड़ा था। दीक्षित मोटा पेट लिए उस पर बैठा था। उसके मुस्कुराते हुए चेहरे ने मेरे अंदर के उस बचे हुए दिल को मिटा दिया और मैंने बिना कुछ सोचे समझे हाथ में धारदार चाकू से उसकी गर्दन काट दी। वहाँ से सीधे, मैं अपने पूर्व प्रमिका के पास गया, उसने मेरे और मेरे परिवार के साथ जो किया उसके लिए उसे पछतावा हुआ। उसके रोते हुए चेहरे ने मुझे पिघला दिया, पता नहीं कैसे, यह माँ की परवरिश थी या सिर्फ मेरा बेदाग दिल। मैंने चाकू को एक तरफ फेंक दिया और दीक्षित का सारा खून अपने हाथों पर से, उसके चेहरे पर लगा दिया, जिससे वह लाल हो गई। अंत में - वह लाल और गीली थी ... और मुझे पुरी तरह बरबाद कर दिया गया था। आज मुझे मिली सबसे अच्छी बात? मोक्ष। उपरोक्त पाठ कला का एक काल्पनिक (बहुत छोटा) कलाकृति है, जो हर दिन हजारों पुरुषों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकता और दुर्व्यवहार को प्रदर्शित करने के लिए अंकित है। आपने इसे मेरी कहानी के रूप में पढ़ा - शायद यह मेरे जैसे कई लोगों की है जो आपके लिए अजनबी हैं। अगर आपको लगा हो तो मुझे कमेंट में बताएं। ।।।।।।।।।

Monday, January 4, 2021

// Sathi //

ज़िन्दगी की शाम ढलने को है, किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गई, वह बड़बड़ाते घर से बाहर निकला , सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा, पता नहीं समझती क्या है खुद को? जब देखो झगड़ा, सुकून से रहने नहीं देती, नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया. आवाज सुनाई दी - इतनी सर्दी में बाहर चाय पी रहे हो? उसने गर्दन घुमा कर देखा तो साथ के स्टूल पर बैठे बुजुर्ग उससे मुख़ातिब थे. आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं. बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा मैं निपट अकेला, न कोई गृहस्थी, न साथी, तुम तो शादीशुदा लगते हो. पत्नी घर में जीने नहीं देती, हर समय चिकचिक,बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ. गर्म चाय के घूँट अंदर जाते ही दिल की कड़वाहट निकल पड़ी. बुजुर्ग-: पत्नी जीने नहीं देती! बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है. 8 बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए, जब ज़िंदा थी, कभी कद्र नहीं की, आज कम्बख़्त चली गयी तो भूलाई नहीं जाती, घर काटने को होता है, बच्चे अपने अपने काम में मस्त, आलीशान घर, धन दौलत सब है पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं, यूँ ही कभी कहीं, कभी कहीं भटकता रहता हूँ. कुछ अच्छा नहीं लगता, उसके जाने के बाद, पता चला वो धड़कन थी मेरे जीवन की ही नहीं मेरे घर की भी. सब बेजान हो गया है, बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर था. उसने चाय वाले को पैसे दिए, नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा, एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया. दूर से देख लिया था, डबडबाई आँखो से निहार रही पत्नी चिंतित दरवाजे पर ही खड़ी थी. कहाँ चले गए थे, जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो ? तुम भी तो बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो, कुछ यूँ...दोनों ने आँखों से एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया.... .if you like our storiy do follow for more .

Tuesday, December 22, 2020

// मां //

।। मां ।।
मां...... बेटे के जन्मदिन पर ..... रात के 1:30 बजे फोन आता है बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है...."जन्म दिन मुबारक लल्ला" बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है - सुबह फोन करती... इतनी रात को नींद खराब क्यों की...कह कर गुस्से मे फोन रख देता है थोडी देर बाद पिता का फोन आता है...हालांकि बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता पर बात को संभालने के लिए कहता है - सुबह फोन करती मां ये कोई वक्त है पागलों के जैसे रात को.... ..वो पापा नींद खराब हो गई ... पिता ने कहा - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है की सचमुच तुम्हारी मां पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया.... और बेटा वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया... रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था... तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था भराई सी आवाज मे इतना कहके पिता फोन रख दिया.... बेटा सुन्न हो जाता है उसे बाकी सारी रात नींद नहीं आती वो भोर होते ही मां के घर जा कर मां के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब मां कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया.... फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो ... मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखूंगा.... तब माँ कहती है- माफ कर दो बेटा है.... दोस्तो सब जानते हैं दुनिया में एक मां ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी पिता अगर तमाचा ना मारे तो बेटा सर पर बैठ जाए इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए उन्हें प्यार दीजिए... मां की ममता तो अनमोल है.... निवेदन:- इसको पढ़ कर अगर आँखों में आंसू बहने लगें तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये .... मन हल्का हो जायेगा
🌴 भगवान से बढ़कर माता पिता होते हैं 🌴 🌴🌲 दोस्तो कृपया इनका आदर और ख्याल रखिए🌲🌴 अगर कहानी अच्छी लग रही है ।।। 👍🤗 तो शेयर भी कर दीजिए धन्यवाद।।

Monday, December 21, 2020

||। कोर्ट पैंट ||

कोट पैंट.....
अपनी पहली तनख्वाह मिलते ही राजू ने पिताजी के लिए नया कोट पेंट खरीदा और सीधा पहुंच गया स्टेशन रोड पर स्थित उनकी छोटी-सी चाय की दुकान पर... उसने कोट पेंट खरीदने के बाद बचे लगभग बीस हजार रुपये लिफाफे में भरकर रख लिए थे... दुकान पर पहुँचते ही सबसे पहले पिताजी के चरण स्पर्श कर बोला...पापा..., ये कोट पेंट आपके लिए... और ये मेरी सेलरी के बचे हुए पैसे.... आँखें भर आई सुरेंद्र जी की... इस दिन के लिए उन्होंने पिछले बीस साल से क्या कुछ नहीं किए था... काश ....उसकी मां भी ये दिन देख पाती...जो पंद्रह साल पहले ही एक दुर्घटना में गुजर गई थी... छलकने को आतुर आँसुओं को रोकते हुए सुरेन्द्र जी बोले ...."ये क्या राजू.... मेरे लिए नये कोट पेंट की क्या जरूरत थी .... अपने लिए कुछ ढंग के कपड़े लिए होते...मेरा क्या है मैं तो दुकान पर कुछ भी पहनकर काम चला लेता हूं लेकिन तुम तो स्कूल में टीचर हो गए हो ... ढंग के कपड़े तो तुम्हारे पास होने चाहिए और ये पैसे, बेटा....अब ये अपने पास ही रखो... नही पापा.... ये महज कोई कोट पेंट नही है.... मेरा सपना है जो बचपन से ही देखता था जब आप कड़ाके की ठंड में भी सुबह - सुबह फटी बनियान और शॉल ओढ़कर दुकान खोलते और देर रात तक उसी हाल में रहते... तो मैं स्कूल आते-जाते अकसर सोचता कि बड़ा होकर जब कमाने लगूंगा, तो सबसे पहले आपके लिए कोट पेंट खरीदूंगा... और बाकी के पैसे तो आपके पास ही रहेंगे, मैं आपसे माँग लिया करूंगा पहले की तरह.... सुरेंद्र जी ने बेटे को गले से लगा लिया ...आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी थीं। दुकान पर बैठे ग्राहक भी पिता-पुत्र की बातें सुनकर भावुक हो उठे थे....

Tuesday, August 4, 2020

! बंधन निःस्वार्थ !

"निस्वार्थ प्रेम ...


शिवम् अपनी बहन से बोला - दीदी....इस बार मे काफी बुरे वक्त से गुजरा हूं ये कोरोना बीमारी की वजह से हुआ लाँकडाऊन .......नौकरी भी नही रही ....
जैसे तैसे सब्जियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं इसलिए इसबार मे केवल तुम्हें इक्यावन ( 51 ) रू ही दे पाऊंगा.....
दीदी - अच्छा.... यदि तुम मुझे केवल इक्यावन रू दोगे तो मे भी इसबार कागज की राखी बांधूगी ....
और मिठाई की जगह खीर बनाकर लाऊंगी.....
कहकर दीदी चली गई .....
शिवम् की पत्नी भावना- देखा शिवमजी.....दीदी.बस पैसों के लिए आपको राखी बांधती है कोई प्यार या स्नेह के लिए नही....
शिवम् - नही भावना ....ऐसा नही है ...दीदी मुझे बचपन से स्नेह करती है ममता करती है मां जैसे......
हूं..... करते भावना अंदर चली गई....
अगले दिन राखी पर....
दीदी आई सचमुच मिठाई की जगह खीर बनाकर लाई एक थैले मे सचमुच कागज की राखी बनाकर लाई थी...
ये देखकर भावना मुस्कुरा रही थी....
दीदी ने तिलक किया खीर से शिवम् का मुंह मीठा करवाया राखी बांधी और शगुन के इक्यावन रु लेकर माथे से लगाकर खुशी से चली गई ....
कुछ देर मे  शिवानी ने पापा के हाथों से राखी को हंसते खेलते खींचा .....
हे ....ये कया .....राखी दो दो हजार के पांच नोटों से बनाई हुई थी साथ मे एकबात उस कागज पर लिखी हुई थी जिसमें दो दो हजार के नोट थे ....
शिवम् ...मेरे भाई ...ये प्यार और आपसी संम्बधो को मजबूत करने वाला त्यौहार है लेनदेन का नही ....
और ये पैसे कोई उपहार या लेनदेन के लिए नही बल्कि एक साथ खडी बहन का आशिर्वाद है ...जब सुख के दिन नही रहे तो यकीन मान दुख के भी नही रहेंगे ....
हम भाई बहनों का प्यार निस्वार्थ होता है ...
सदा खुश रहो.....
अब शिवानी की आँखों  में भी खुशी के आँसु थे मगर भावना शर्मिंदगी से सर झुकाये खड़ी थी ....वो भी भाई बहन के निस्वार्थ प्रेम के आगे नतमस्तक थी....

Happy Raksha bandhan...... 

Monday, July 20, 2020

! "*आर्मी मैन पार्ट - 4 *" !

Hello,

Yaha mene ek Aur Intresting Story Army Man Part - 4 hindi kahaniyon post ki hai. asha karta hu ki apko Army man ki ye hindi kahaniya ki series jarur pasand ayengi.


फौजी.....



....शिवम् को एक और चिंता थी....
अगर वह 3 महीने बाद फिर से छुट्टी पर आता है, तो अपने बच्चे के जन्म के समय भावना के पास नहीं रह पाएगा.... इस का मतलब उसे बीच में छुट्टी लेने से बचना होगा तभी 2 महीनों की इकट्ठी छुट्टी ले पाएगा. यही सब सोच कर वह और परेशान हो जाता. ऐसे हालात में वह बीच के पूरे 5 महीनों तक भावना को देख नहीं पाएगा. वह जिस जगह पर है वहां भावना को किसी भी हालत में ले जाना असंभव है. फिर इस हालत में तो उस का सफर करना वैसे भी ठीक नहीं है, और वह भी इतनी दूर. एक पुरुष अपने प्यार और फर्ज के बीच कितना बेबस, कितना लाचार हो जाता है....
छुट्टी के आखिरी दिन वह सुबह भावना को डाक्टर के यहां ले गया. उस का चैकअप करवाया. सब नौर्मल था. घर आ कर उस ने पैकिंग की. इस बार अपनी पैकिंग के साथ ही उसे भावना के सामान की भी पैकिग करनी पड़ी... क्योंकि अब वह भावना को अकेला नहीं रख सकता....
उसे उस के मातापिता के घर पहुंचा कर जाएगा... सामान बैग में भरते हुए उस ने कमरे पर नजर डाली. अब पता नहीं कितने महीनों तक वह अपने घर, अपने कमरे में नहीं रह पाएगा. उस की आंखें भीग गई उस ने चुपचाप शर्ट की बांह से आंखें पोंछ लीं...
‘‘क्या हुआ जी....’ भावना ने तड़प कर पूछा....
‘‘कुछ नहीं....शिवम् ने भरे गले से जवाब दिया....
‘‘इधर आओ मेरे पास...’’ भावना ने उसे अपने पास बुलाया और फिर उस का सिर अपने सीने पर रख कर उस के बाल सहलाने लगी...
शिवम् बच्चों की तरह बिलख कर रो पड़ा....
‘‘यह क्या… ऐसे दिल छोटा नहीं करते....
ये दिन भी बीत जाएंगे जी...भावना उसे दिलासा देती रही...
वापस जाते हुए शिवम् ने एक भरपूर नजर अपने घर को देखा और फिर भावना के साथ कार में बैठ गया....
भावना के पिता का ड्राइवर उसे बस स्टैंड पहुंचाने आया था. वही वापसी में भावना को अपने माता पिता के घर पहुंचा देगा....
बसस्टैंड पहुंच कर शिवम् ने अपना सामान निकाला और बस में चढ़ा दिया. वह चेहरे पर भरसक मुसकराहट ला कर भावना से बात कर रहा था औैर उसे तसल्ली दे रहा था...भावना अलबत्ता लगातार आंसू पोंछती जा रही थी. लेकिन शिवम् तो पुरुष था ना... जिसे प्रकृति ने खुल कर रोने और अपना दर्द व्यक्त करने का भी अधिकार नहीं दिया है.....
कोई नहीं समझ सकता कि कुछ क्षणों में एक पुरुष कितना असहाय हो जाता है....
कितना टूट जाता है अंदर से जब दिल दर्द से तार तार हो रहा होता है और ऊपर से आप को मुसकराना पड़ता है, क्योंकि आप पुरुष हैं जो पौरुषेय और भावनात्मक मजबूती व स्थिरता का प्रतीक है....
रोना आप को शोभा नहीं देता शिवम् भी भावना को समझाता, सहलाता खड़ा रहा...
बस चलने को हुई बस ड्राइवर ने ऊपर चढ़ने का इशारा किया. तब शिवम् ने भावना को गले लगाया और तुरंत पलट कर बस में चढ़ गया. सीट पर बैठ कर वह भावना को तब तक बाय करता रहा जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.....
शिवम् ने अपना मोबाइल निकाला.... मोबाइल के पारदर्शी कवर के अंदर एक छोटी सी रंगीन नग जड़ी बिंदी थी.... जो भावना के माथे से निकल कर ना जाने कब रात में तकिए पर चिपक गई थी.... शिवम् ने उसे मन से सहेज कर अपने मोबाइल के कवर के अंदर चिपका लिया था...
अब यही उस के साथ बिताई यादों का खजाना था जो अगल 3-4 या ना जाने कितने महीनों तक उसे संबल देता रहेगा....
रात के अंधेरे में अब कोई उस की कमजोरी देखने वाला नहीं था एक पुरुष को रोते देख कर आश्चर्य करने या हंसने वाला कोई नहीं था....
अब वह खुल कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता था. जी भर कर रो सकता था… शिवम् मोबाइल कवर के अंदर से झांकती भावना की बिंदी पर माथा रख कर बेआवाज रोने लगा… आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे..

...dosto ye kahani to yhi samapt ho rahi... par ye kahani koi jhut nhi har fouji ki hai desh or parivar ko apni jaan se jada pyar karna.... in fouji se jada koi ni kar sakta...

अपनी पत्नी से विदा ले कर एक फौजी ने वापस उस दुनिया के लिए यात्रा शुरू कर दी जहां कदम कदम पर सिर पर मौत मंडराती है....
जहां से उसे नहीं पता कि वह कभी वापस आ कर पत्नी और बच्चे को कभी देख भी पाएगा या नहीं....
बस हर पल जेब में सिंदूर की डिबिया रखे वह कुदरत से कामना करता रहता है कि बस इस बिंदी और उस अजन्मे बच्चे की खातिर उसे वापस भेज देना.....
दोस्तों यही है हमारे एक एक वीर फौजी भाई की जीवनगाथा..... ऐसे ही त्याग और बलिदान के लिए सदैव तत्पर रहनेवाले सभी फौजी भाइयों को मेरा सेल्यूट
जय हिंद

Friday, July 17, 2020

! * आर्मी मैन पार्ट - 3 * !

Hello, 

Yaha mene ek Aur Intresting Story di jo ki Army man ki life ke upar based hai ye hindi kahaniyon me se ek hai. asha karta hu ki apko Army man  ki ye hindi kahaniya jarur pasand ayengi.


फौजी....

काश.....जीवन ऐसा ही होता शांत, सुव्यवस्थित, निश्चिंत. बस वह भावना, उन का बच्चा और घर.... 
रात में नीचे किचन में जा कर शिवम् अपने लिए कौफी और भावना के लिए दूध ले आया....
‘‘वहां भी ड्यूटी यहां भी ड्यूटी… आप को तो कही पर आराम नहीं हैँ..... 
वहां से इतना थक कर आए हैं और यहां भी चैन नहीं है,’’ .. भावना दूध का गिलास लेते हुए बोली....
‘‘इस ड्यूटी के लिए तो कब से तरस रहा था....
भला तेरे लिए कुछ करने में मुझे थकान लग सकती है क्या...शिवम् प्यार से बोला....
‘‘इतना चाहते हो मुझे....भावना विह्वल स्वर में बोली....
‘‘तू मेरी सांस है. तेरे प्यार के सहारे ही तो जी रहा हूं,...शिवम् बोला. ...
सुबह उठते ही शिवम् ने भावना से पूछा..
‘‘क्या खाएगा मेरा बच्चा आज...’
‘‘कौर्नफ्लैक्स....भावना बोली.’’
शिवम् ने फटाफट दूध गरम कर उस में बादाम, पिस्ता डाल कर कौर्नफ्लैक्स तैयार कर के चाय की ट्रे के साथ बाहर बगीचे में ले आया....
दोनों झूले पर बैठ गए.... सुबह की ठंडी हवा चल रही थी सामने सूरजमुखी के पीले फूलों वाला टी सैट था...
साथ में भावना थी और वह पैरा कमांडो जो रातदिन देश की सुरक्षा की खातिर आतंकवादियों का पीछा करते मौत से जान की बाजी खेलता रहता,... आज की खुशनुमा सुबह अपने घर पर था. दोपहर का खाना दोनों ने मिल कर बनाया.... छुट्टियों में भावना के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने के उद्देश्य से शिवम् दोनों समय खाना बनाने में उस की मदद करता. बीच में बिरहा के बादल छंट जाते और प्यार की कुनकुनी धूप दोनों के बीच खिली रहती. दोपहर में वह उसे कोई कौमेडी फिल्म दिखाता, वही उस की पसंद के फल काट कर खिलाता. फिर खाना भी अपने हाथ से परोसता....
‘‘अरे मैं नीचे आ जाती ना…. आप ऊपर क्यों ले आए खाना... 
कितने चक्कर लगाओगे...’’ भावना बोली....
‘‘तुम्हारे लिए अभी बारबार सीढि़यां चढ़ना उतरना ठीक नहीं है... इसलिए मैं खाना ऊपर ही ले आया..
’’शिवम् ने थाली में खाना परोसते हुए बोला...
‘‘लीजिए....आप का पति आप की सेवा में हाजिर है....
‘‘कितनी सेवा करोगे जी...
‘हम तो सेवा करने के लिए ही पैदा हुए हैं जी... 
ड्यूटी पर भारत माता की सेवा करते हैं और छुट्टी में पत्नी की....’ शिवम् भावना को एक कौर खिलाते हुए बोला.
बीच बीच में शिवम् अपनी पोस्टिंग की जगह भी फोन कर वहां के हालचाल पता करता रहता....
आखिर वह एक फौजी था और फौजी कभी छुट्टी पर नहीं होता....
हर बार पोस्टिंग की जगह से फोन आने पर उस का दिल डूबने लगता कि कहीं वापस तो नहीं बुला रहे… 
कहीं किसी इमरजैंसी के चलते छुट्टी कैंसिल तो नहीं हो गई. कुल 22-23 दिन वह भावना के साथ रह पाता है, उस में भी हर पल मन धड़कता रहता कि कहीं छुट्टी कैंसिल ना हो जाए, क्योंकि पैरा कमांडो होने के कारण उस की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा थीं.....
शिवम् की छुट्टियां खत्म होने को थी अब रोज रात को वह अफसोस से भर जाता कि भावना  के साथ का एक और दिन ढल गया.... ऐसे ही दिन सरकते गए...
शिवम् रात में गैलरी में खड़ा सोचता रहता कि इस बार भावना को छोड़ कर जाना जानलेवा हो जाएगा. वह इस दौर में पूरा समय भावना के साथ रहना चाहता था....
अपने बच्चे के विकास को महसूस करना चाहता था इस बार सच में उस का जरा भी मन नहीं हो रहा था जाने का.... उस ने मन ही मन कामना की कि कम से कम अगली पोस्टिंग ऐसी जगह हो कि वह 2 साल तो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह पाएं.......

To be continued....... 


जय हिंद



Thursday, July 16, 2020

! *.. आर्मी मैन पार्ट - 2. . * !

फौजी.....



शिवम् ने अपनी रात की ड्यूटी लगवा ली. वह रोज रात को 11 बजे से ढाई बजे या 3 बजे तक ड्यूटी करता और पूरी ड्यूटी के दौरान भावना से बातें करता रहता....
हर 10-15 मिनट पर वह सिटी बजा कर अगली पोस्ट पर अपने इधर सब ठीक होने की सूचना देता और.. फिर जब उधर से जवाब आ जाता तो फिर भावना से बातें करने लगता ऐसे दोनों काम हो जाते. ...
पत्नी और देश दोनों के प्रति वह पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज पूरा कर देता.....
3 बजे वह रूम में आता. हाथमुंह धो कपड़े बदल मुश्किल से डेढ़ दो घंटे सो पाता कि फिर सुबह उठ रैडी हो कर ड्यूटी जाने का समय हो जाता. फिर सारे दिन की भागादौड़ी. उस की यूनिट के लोग उस की दीवानगी देख कर उस पर हंसते, लेकिन उस की देश और परिवार दोनों के प्रति गहरी निष्ठा देख कर उस की सराहना भी करते. इधर 2-3     ऐनकाउंटरों में मिलिटैंट्स के मारे जाने के बाद से .....  पूरे सैक्टर में खामोशी सी छाई थी.



लेकिन शिवम् को हमेशा लगता रहता कि यह किसी जोरदार धमाके के पहले की शांति हो सकती है....
हो सकता है अचानक जबरदस्त हमले का सामना करना पड़े. वह अपनी तरफ से हर समय चौकन्ना रहता. लेकिन पूरा महीना शांति से बीत गया शिवम की छुट्टी मंजूर हो गई. अब उस की बेचैनी और ज्यादा बढ़ गई....
दिन काटे नहीं कटते.
घर जाने के लिए यूनिट से सवा घंटा बस से जम्मू. जम्मू से ट्रेन पकड़ कर अजमेर और फिर अजमेर से दूसरी ट्रेन पकड़ कर अहमदाबाद पूरे 2 दिन का सफर तय कर वह अहमदाबाद बस स्टैंड पहुंचा....
टैक्सी ले कर 1 बजे अपने घर भावना  के सामने खड़ा था.
भावना का चेहरा अपने हाथों में थाम कर शिवम्  ने उस का माथा चूम लिया..... 2 मिनट तक वह उसे एकटक देखता रहा. उस का प्यारा चेहरा देख कर शिवम् की पिछले कई महीनों की थकान दूर हो गई, सारा तनाव खत्म हो गया. भावना के साथ जिंदगी एक बार फिर से प्यार भरी थी, खुशनुमा थी. दूसरे दिन भावना का अल्ट्रासाउंड होना था....शिवम् उसे क्लीनिक ले गया. उस ने डाक्टर से रिक्वैस्ट की कि वह भावना के साथ अंदर रहना चाहता है, जिसे डाक्टर ने स्वीकार लिया. मौनिटर पर शिवम् बच्चे की छवि देखने लगा.... खुशी से उस की आंखें भर आई...
रात में जब दोनों खाना खाने बैठे तो शिवम् को महसूस हो रहा था जैसे वह पता नहीं कितने बरसों के बाद भावना के साथ बैठा है एकदम फुरसत से.... कितना अच्छा लग रहा है… दिमाग में तनाव नहीं… मन में कोई हलचल नहीं. सब कुछ शांत.... 
सुव्यवस्थित ढंग से चलता हुआ शिवम्  ने एक गहरी सांस ली कि काश....... 

  To be continued..... 

जय हिंद

Tuesday, July 14, 2020

.. ! आर्मी मैन !..

फौजी.....


शिवम्  उस समय ड्यूटी पर था जब उसे पता चला कि वह बाप बनने वाला है.....
पत्नी भावना  से फोन पर बात करते हुए शिवम् का गला खुशी से भर्रा गया....
उसे अफसोस हो रहा था कि वह इस समय भावना के साथ नहीं है.... उस ने फोन पर ही ढेर सारी नसीहतें दे डाली कि यह नहीं करना.... वह नहीं करना.....

ऐसे मत चलना... . बाथरूम में संभल कर जाना.... कश्मीर के अतिसंवेदनशील इलाके में तैनात पैरा कमांडो मेजर शिवम् जो हर समय कदम कदम पर बड़ी बहादुरी और जीवट से मौत का सामना करता है, आज अपने घर एक नई जिंदगी के आने की खुशी में भावुक हो उठा...
ना जाने कब आंखों में नमी उतर आई. आम लोगों की तरह वह इस समय अपनी पत्नी के पास तो नहीं हो सकता, लेकिन है तो आखिर एक इंसान ही.... 
लेकिन क्या करे किसी बड़े उद्देश्य की खातिर, अपने देश की खातिर अपनी खुशियों की कुरबानियां तो देनी ही पड़ती है....
शाम को मेस में जा कर शिवम् ने खुद सब के लिए सेंवइयों की खीर बनाई और सब को खिलाई......
उस रात शिवम् की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सब कुछ सपने जैसा लग रहा था.....
शिवम्  बारबार भावना  को फोन कर उस से पूछता, ‘‘भावना .... यह सच है ना....
भावना  को हंसी आ जाती, उस के और भावना  के प्यार का अंश..... 
उन का अपना बच्चा.....भावना  आज और भी ज्यादा अपनी, और भी ज्यादा प्यारी तथा दिल के और करीब लग रही थी.....शिवम् ने सुबह 6 बजे से ही भावना को फोन करना शुरू कर दिया...
‘‘क्या कर रहा है मेरा बच्चा.... 
भूख तो नहीं लगी....
जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो....और दवा ली....
कैलेंडर पर 1-1 कर के तारीखें आगे बढ़ रही थीं और शिवम्  के छुट्टी पर जाने के दिन भी करीब आते जा रहे थे. वैसे तो भावना से शादी होने के बाद से शिवम् को हर बार ही छुट्टी पर जाने की जल्दी रहती थी, लेकिन इस बार तो उसे बहुत ही ज्यादा बेचैनी हो रही थी. हर दिन महीने जितना लंबा लग रहा था....उधर भावना  को भी रात देर तक नींद नहीं आती थी...दिन तो फिर भी कट जाता था, लेकिन रात भर वह बेचैनी से करवटें बदलती रहती......

    ..to be continued..


जय हिंद

Hello dosto.. ye kahani desh ki army man ke bare me hai... jo desh ke rakhsa or parivar dodo ke prati apne kartv pyar ko apni jaan se bi jada.. mahtv deta.... 
 A real heroes Army..... 

Sunday, July 5, 2020

.. ! "* सच्ची मोहब्बत *" ! ..

       सच्ची मोहब्बत...


..एक बार ऐसा हुआ पति पत्नी में छोटी सी बात पर झगड़ा हो गया
गर्मीयो की रात थी वो दोनों अपनी अपनी जगा पर सो गये आधी रात को पति को प्यास लगी
वाटर कूलर पास ही मेज़ पर रखा था पति ने खुद उठ कर पानी पिया अचानक उसने मुड कर देखा
बीवी उसे गुस्से में देख रही थी और बोली आपने पानी खुद कियो पिया पति ने भी गुस्से और अकडन से जवाब दिया हाथ पाँव सलामत हैं खुद पी सकता हूँ मोहताज नहीं हुँ..


बीवी ने क़रीब आकर पति का गिरबान पकड़ लिया और बोली केे एक बात गोर से सुनो मेरी
लड़ाई अपनी जगह लेकिन में अपना हक़ और ख़ुशी को छीनने नहीं दूंगी
पता है आपको पानी पिलाते हुए कितनी मुझे ख़ुशी होती है भले ही बात चीत बंद कियो न हो
लेकिन पानी आप खुद नहीं पीयेंगे बीवी की आँखें नर्म और नाज़ुक सुर्ख थी पति ने
उसे गले लगाया और झगड़ा खत्म कर दिया❤❤ और फिर दस साल बाद...

जब रात को तीन बजे पति पानी पीने केे लिए उठता है तो दीवार पर लगी बीवी की खूबसूरत तस्वीर
को देख कर आँखों से पानी बहनें लगता है और भीगी हुई आँखों से तसवीर को हाथ लगाता हैं उसे अपनी बीवी की एक बात याद आ जाती है ..वो कहती थी मोहब्बत मर नहीं सकती
मेरे भाइयों और बहनो अपने क़रीब लोगों की क़दर कीजिए क्या पता वक़्त कहा पलटी मार दे !!.... 
.. 
thanku for read.... 

Wednesday, July 1, 2020

"*आत्मा की शांति *"

Meri kahaniya... 

                 * आत्मा की शांति *


आत्मा की शांति.....

घर में क्रंदन मचा हुआ था। रात घर के मुखिया प्रकाश जी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। सभी रिश्तेदारों को खबर करवा दी गई थी। दूर-दूर से रिश्तेदारों के आने में 12:00 बज गए। प्रकाश जी की पत्नी अपने पति की असामायिक मृत्यु से सदमे में थी और कई बार बेहोश हो चुकी थी। उनकी पुत्र वधू किसी तरह उन्हें संभाल रही थी।
उनका डेढ़ वर्षीय पोता अपनी दादी के आंसू पोंछता और फिर खुद भी रोने लग जाता। थोड़ी थोड़ी देर में वह अपनी मां को दूध व खाने के लिए भी कहता। लेकिन रमा आने जाने वालों को पानी देने व बैठाने के इंतजाम करने में इतनी व्यस्त थी कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
दाह संस्कार से आने के बाद बड़े बुजुर्ग व अन्य पारिवारिक सदस्य प्रकाश जी की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं के शांतिभोज में क्या क्या बनेगा इस बात पर चर्चा करने बैठ गये।
रमा की बुआ सास ने उसे घर की धुलाई के लिए बोल दिया। रमा ने जल्दी से सारे काम निपटा, अपने बेटे के लिए खिचड़ी बना दी। वह जैसे ही उसे खिलाने के लिए खिचड़ी थाली में डालने लगी, तभी बुआ सास रसोई में आ गई और खिचड़ी देखते ही गुस्से से बोली "यह क्या अनर्थ कर दिया बहु तूने! तुझे इतना भी नहीं पता कि घर में 2 दिन तक चूल्हा नहीं जलता!"

रमा घबरा गई और बोली "माफ करना बुआ जी, मुझे नहीं पता था। राघव सुबह से भूखा था और वो दोपहर में खिचड़ी ही खाता है इसलिए मैंने बना दी।"
" खिचडी क्यों, पकवान बना देती! कुछ देर और रुक जाती पड़ोसी ला रहे थे ना खाना बनाकर। पर तुम्हें तो अपनी मनमानी करनी है। अब खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही है। अपने ससुर की आत्मा की शांति चाहती है तो जा फैंक दे इस खिचड़ी को।"
रमा जैसी खिचड़ी को फैंकने लगी, तभी उसकी सास वहां आ गई और बोली "रुक जा बहु। खिचड़ी फैंकने की कोई जरूरत नहीं । जा इसे राघव को खिला दे।"
"यह क्या कह रही हो भाभी। यह तो नादान है। तुम्हें तो सब रीति रिवाजों का पता है ना!"
"सब पता है मुझे इन आडंबरों का। वहां तेरे भैया की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई और यहां बैठ सब उनकी तेरहवीं पर बनने वाले पकवानों की लिस्ट बनाने बैठ गये। देखो तो जरा बाहर। अभी तक सब घड़ियाली आंसू बहा रही थे और अब हंसी ठिठोली में मगन है। ये सब तो समझदार है ना! जानती हूं तुझे भी अपने भैया के असमय जाने का बहुत दुख है। लेकिन इसमें इस नासमझ का क्या दोष! इन रीति रिवाजों के नाम पर इस नन्ही सी जान को भूखा रखना शोभा देता है क्या! तुझे तो पता है ना कि तेरे भैया की जान बसती थी अपने पोते में तो क्या उसे भूखा देखकर उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। " कह रमा की सास रोने लगी.....



"सही कह रही हो भाभी। भैया की आत्मा को शांति उन पकवानों से नहीं, अपने पोते को ये खिचड़ी खाते देख कर मिलेगी। जा बहु खिला दे राघव को खिचड़ी।" कह वह भी अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछने लगी...



         Thanku fot read....... 

Sunday, June 28, 2020

* माँ का प्यार *

Meri kahaniya 


                 माँ का प्यार, 

......😊तीन वर्षीय टिंकू कुर्सी पर झूलते झूलते मोबाइल चला रहा था...
अचानक कुर्सी टूट गई ...
टिंकू धडाम से जमीन पर गिरा ....ये देखकर उसका बडा भाई दौड़ते हुए आया और मोबाइल छीनते हुए बोला
इसीलिए मे तुझे मोबाइल नही देना चाहता....
तबतक पिताजी भी वहां पहुंच गए....
थप्पड़ों की बरसात करते हुए बोले...नालायक...
कितनी बार तुझे कहा है कुर्सी बैठने के लिए होती है झूला झूलने के लिए नही ...
इतनी पुरानी मनपसंद कुर्सी तोड दी ...
आज से तेरी पाँकेटमनी बंद....
तबतक रसोईघर में काम कर रही मां भी दौड़ती हुई आई ...टिंकू को गोद मे उठाकर पुचकारते हुए बोली 
मेरे बच्चे ...कही चोट तो नही लगी ...
शरीर पर इधर उधर देखने लगी और फूंक मारकर हाथ पैरों को सहलाने लगी ....
टिंकू का कोमल मन प्यार का असल मतलब समझने की चेष्टा कर रहा था....
दोस्तों यहां मे किसी परिवार के सदस्य से मां के प्यार की तुलना नही कर रहा बल्कि बस यही बताने की कोशिश कर रहा हूं एक मां को बच्चे के चोट दुख और परेशानियों का एहसास सबसे ज्यादा होता है ....
और उसकी वजह है ...वो दुनिया में आपको किसी से भी नौ महीने अधिक जानती है महसूस करती है...

thanku for read....

Wednesday, June 24, 2020

* नया रिश्ता *

Meri kahaniya..

                                      

                                     नया रिश्ता 




..........बिदा करा कर बारात वापस आयी और मैं इन्हें अपनी नौकरी वाले शहर ले आया । ......


छोटा सा मकान , आगे बरामदा , दो कमरे, किचन , पीछे कच्चा मिट्टी वाला आंगन जिसमे एक नीम का पंद्रह बीस फुट ऊंचा पेड़ था ।


पहले ही दिन सवेरे सवेरे इन्होंने आंगन के सेंटर में गोबर से लीप कर मायके से लायी तुलसी लगा दी ।चारो तरफ़ रंगोली बना कर दीपक जला मेरी तरफ़ विजयी भाव से देखा... मैं तो पहले ही सब हार चुका था .. मुस्कुरा दिया ।

इन्होंने मेरे क्वार्टर को उस सवेरे घर मे बदल दिया था । नीम वाले आँगन में कुछ कमी तो मुझे पहले भी लगती थी पर वो क्या थी , इन्होंने पहली सुबह ही बता दिया ।


गाँव और शहर का फर्क मुझे कभी इनकीं चेहरे हाथों की भाव भंगिमाओं में तो कभी चौड़ी फैलती आंखों में तो कभी मुँह से निकलती हाय राम , जे का है तो कभी हाय दैया में !

हर वक़्त एक ही सवाल पूछती , ' आपको का पसंद , का खाओगे , का बनाएं ? ऐसा दिन में चार पाँच बार तो हो ही जाता । और मैं टटोल रहा था कि इसे क्या क्या पसंद है ?.........


गाँव की मिठाई , साड़ियाँ , गहने इन्हें शहर में नही दिख रहे थे । बाज़ारो में इनको इतना सब नया नया दिख रहा था ये हर दुकान पर रुक कर पूछती , ' जे का है , जा से का होत , जे आपको पसंद , बो ले लो आप अपने लाने !"

मैं इसे पूछता ये ले लो , ये पहनोगी , ये खाओ , ये ले चलो .. पर हर बात का उत्तर एक ही होता , ' हमे का कन्ने जे सब ले कर , हमे नई लेने !"

एक महीना हो चला । इनका यही ' ना ना का पहाड़ा ' चल रहा था , मुझे अच्छा नही लग रहा था जो हर बात के लिए मना कर देती ।

वो शाम गहरा गयी थी ।....


आकाश में बादल भी घुमड़ रहे थे , आज शायद बारिश होगी , मैंने इन्हें कहा ... और लाइट चली गईं ।

बारिश के आसार होते ही बिजली जाती रहती थी पर शादी के बाद पहली बार आज शाम को घुप्प अंधेरा छा गया । मैं कुछ कहता इससे पहले ही ये आले में रखी ढिबरी जलाने की तैयारी करने लगी ।

उनकी आँखों में मुझे मायके की चमक दिख रही थी धुंधलके में घूँघट से ढिबरी की लौ में एक बार फ़िर से गाँव के उस पीछवाड़े के हीरे चमक उठे और मैं सम्मोहित सा इन्हें देख रहा था ।


.....ये माचिस जलाती और मैं फूँक मार कर बुझा देता ,तीन चार बार ऐसा ही किया और घूँघट चुप चाप झुक गया ..

मैंने कहा , " आज तुम्हे बताना ही पडेगा कि तुम्हे क्या क्या पसंद है .. सब्ज़ी में , मिठाई में , गहनों में , कपड़ो में कुछ बोलती ही नहीं , आज बताना ही पड़ेगी अपनी पसंद . ... वरना मैं ढिबरी नही जलने दूँगा ..। "

अचानक ... घूँघट मेरे सीने से आ लगा और मद्दम आवाज़ आयी , " आप और सिर्फ़ आप ... बस !" उस रात .. न तो बिजली आयी और न ढिबरी ही जली ... पर रात भर बादल बरसे और ... ख़ूब बरसे ...

    

Kuch to baat hai.....Is barish me...😊😊😉

......यार गांव की लड़की और शहर की लड़की में सच ने बहुत अंतर होता है ।

आपको ये स्टोरी कैसी लगी ।।।...... कमेंट seccion में जरूर बताएं।।।


...             ...thanku for read.....

Sunday, June 21, 2020

* Happy Father's day *

       😊         " हैप्पी फादर्स डे...    😊
  
Happy Father's day

@@पता है मोहनजी.... अपनी आराध्या ने बताया इस संडे फादर्स डे है ...
सुनो ना ...मे कया कहती हूं इस सुअवसर पर हमें पापाजी को एक कलाई घडी देनी चाहिए.....
सुधा अपने पति मोहन से बोली ...उसकी आँखों में एक खुशहाल सी चमक थी वही चमक उसकी सास की आँखों में भी थी..
कया ...कलाई घडी ...कयो ...उनके पास मोबाइल है ना टाइम देखने के लिए...

आपको नही पता पापाजी को कलाई घडी बहुत पसंद है आँफिस जाते वक्त बहुत चाव से बांधते थे ऐसा मम्मी जी ने बताया था एकबार... रिटायरमेंट के वक्त जो उपहार स्वरूप उन्हें मिली थी वो तो कबकी टूट चुकी ...आपसे कितनी बार कहा उसे बनवाने को मगर ...
सुनिए ना इसी बहाने सही उन्हें उनके होने का अपनी अहमियत का एहसास होगा जो वो अक्सर आपकी आँखों में तलाशते है....

देखो मुझे ये बेकार के चोचले पसंद नहीं और ना ही फालतू के खर्चे ...तुम्हें अच्छे से पता है ...है ना...बेकार का फादर्स डे ...आजतक तो कभी पहले नही मनाया हमने ....इन बेकार की चीजों पर ध्यान मत दो ...फालतू के चोचले....
अच्छा हां ....ये परसों बांस की वाइफ का बर्थडे पार्टी है उन्होंने ड्रेस कोड ग्रीन कलर रखा है मेरे पास तो ग्रीन शर्ट कोट पेंट है तुम एक ग्रीन कलर का गाउन ले आना अपने लिए ....ये लो कार्ड....कार्ड देते हुए मोहन बोला
शायद आप भूल गए मोहनजी.... मे भी आपकी ही तरह हूं मुझे भी ये दुनिया के चोचले पसंद नहीं और ना ही फालतू के खर्चे का शौक .......
अब सुधा की आँखों में संतोष भरी चमक थी साथ ही वहीं चमक उसकी सास की आँखों में भी थी ...जो दीवार पर एक हार टंगी तस्वीर मे मुसकुरा रही थी...
अरे सुधा ....
बस मोहनजी बस ....कल यही सब हमारी औलाद हमारे साथ करेंगे तो ...बुजुर्गों को बच्चों से छोटी छोटी खुशियां मिलती रहे तो उन्हें बुजुर्गियत मे दवाओं से अधिक ताकत मिलती है जीवन जीने मे ....और हम ...कया खुशियां दे रहे है पापाजी को ....
एकदम सन्नाटे से मोहन चौका एकपल मे उसे अपना भविष्य सामने आइने मे दिखाई देने लगा...वो झुझंलाते हुए चीखा....नही.... मुझे क्षमा कर दो सुधा क्षमा कर दो....
माफी मुझसे नही पापाजी से मांगिए ....
मोहन तुरंत दौडकर अपने पिता के कमरे में पहुंचा और पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा ...पिता ने उसे उठाकर सीनेसे लगाकर कहा -माफी ...पर मोहन तुमने किया कया है बेटा ....
कुछ नही पापाजी ....कल फादर्स डे है ये भूल गए थे ...
कया....अरे मेरे बच्चो तुम मेरे पास हो मेरे साथ हो मेरा तो हरदिन फादर्स डे है ...सदा खुश रहो ...कहकर मोहन को गले से लगा लिया....आज मोहन को सचमुच पिता की अहमियत और उनके होने का एहसास हो रहा था ......

    Happy Father's day .......😊

Friday, June 19, 2020

* महत्व * ( पहली तारीख )

                    " महत्व "...(पहली तारीख ) ....  
Meri kahaniya
Happy Father's day

आज का दिन बाकी दिनों से अलग था...
परिवार में सभी खुश थे। सभी सदस्यों की इच्छाएं जो पुरी होने जा रही थी। रसोई घर में रमन की मनपसंद सब्जी बना रही पत्नी नदंनी बार-बार घड़ी देख रही थी। कितने समय बाद उसके गहने सुनार के यहां से घर वापिस आने वाले थे। ...

आर्थिक तंगहाली में सुनार के पास गिरवी रखे जेवरों के लिए इस बार नदंनी अड़ गयी थी। उसे वे जेवर इस महिने हर कीमत पर चाहिए थे। रमन स्वयं भी मना करते-करते थक गये थे। सो इस माह की सैलेरी में से सुनार का अब तक का ब्याज जमा कर गृहलक्ष्मी के गहने घर लाने का वचन रमन अपनी पत्नी को दे चूके थे। 
दोनों काॅलेज अध्ययनरत बच्चें अंशिका और अंश भी दरवाजे पर टक-टकी लगाये अपने पिता की प्रतिक्षा कर रहे थे। रमन बेटी अंशिका को हर माह अपनी तनख्वाह में से कुछ राशी देते थे। यह राशी अंशिका अपने लेपटाॅप कम्प्यूटर के लिए जमा कर रही थी। यदि आज रमन उसे आखिर किश्त दे तो लेपटाॅप क्रय करने की समुचित राशी का प्रबंध हो जायेगा। 

अंश इस अभिलाषा में था कि आज उसके पिता काॅलेज की वार्षिक परिक्षा शुल्क की व्यवस्था कर देंगे। ताकी वह निर्भिक होकर परिक्षा में बैठ सकेगा। बुढ़े माता-पिता हमेशा की आज भी निश्चिंत थे। परिवार के जरूरी सदस्यों की मांग पुरी हो जाये तब जाकर उनका नम्बर आयेगा, वर्ना नहीं।
रमन द्वार पर आ चुका था। उसे देखते ही सभी की आंखों में चमक आ गयी। रमन भी उन सभी की मंशाओं पर खरा उतरा। वह अपने चश्मे को रूमाल से पोंछकर कुछ खड़ी सुस्ता रहा था। पार्वती गिलास में पानी ले आयी। क्योंकि उसकी बहू नंदनी अपने गहने देखने में व्यस्त थी। और बच्चें लेपटाॅप की राशी गिनने में व्यस्त हो गये थे। सम्मुख खड़ी अपनी मां को देखकर रमन कुछ चिंतित हो गये। सबके लिए बर महिने कुछ न कुछ अवश्य आता था। किन्तु मां-बाप के इच्छुक होते हुये भी रमन अपनी प्राथमिकताओं में दोनों की इच्छाएं सम्मिलित नहीं कर पाया। अपनी मां के हाथों से पानी का गिलास रमन ने ले लिया। 

"अरे पिताजी! ये आप क्या रहे है? मैं अपने जुते निकाल लुंगा। मुझे पाप का भागी मत बनाईये।" रमन अपने पिता गंगाराम से बोला।
गंगाराम अपने बेटे रमन के पैरों से जुते निकाल रहे थे।
"करने दे बेटा। तु सबके लिए इतना कुछ करता है! हमारी भी जिम्मेदार है कि कुछ तेरे लिए भी करे।" पार्वती बोली। वह अपने आँचल से रमन का पसीने से सना माथा पोंछ रही थी।
"पिताजी! मूझे माफ़ कर दीजिए। आपका चश्मा इस महिने भी बन नहीं पायेगा।" रमन ने अपनी विवशता बताई।
"कोई बात नहीं बेटा। तु मेरे चश्मे की चिंता मत कर।" गंगाराम बोले।
"और मां! आपकी तीर्थ यात्रा! लगता है इस महिने भी नहीं हो पायेगी।" रमन बोला। उसकी आंखे भीग चूकी थी।
"अरे! तु हमारी चिंता छोड़! अपनी चिंता कर। देख तेरे जुते कितने खराब हो चूके है।" पार्वती बोली।
"नहीं मां! अभी तो ये कुछ महिने और चलेंगे!" रमन बोला।
"नहीं बेटा। तुझे डायबीटीस है। पैरों की सुरक्षा आवश्यक है। देख तेरे पिताजी तेरे लिए क्या लेकर आये है?" पार्वती बोली।
रमन आश्चर्य से गंगाराम की ओर देख रहा था। गहने तिजोरी में सही सलामत रखकर ही नदंनी को चैन आया। वह बेडरूम से निकलकर बाहर आ गयी। अंशिका प्रसन्नचित होकर लेपटाॅप का ऑनलाईन ऑर्डर दे चूकी थी। अंश के पास परीक्षा फीस के रूपये आ चूके थे। जिन्हें कल ही वह काॅलेज में जमा करने जाने वाला था।
गंगाराम ने हाथों का पैकेट रमन की ओर सरका दिया। रमन के साथ परिवार के सभी सदस्य देखना चाहते थे की आखिर उस डब्बें नुमा पैकेट में है क्या?

"ये क्या पिताजी! जुते!" रमन चौंका।
"ये तो बहुत मंहगे लगते है?" अंश ने जुते हाथ में लेकर कहा।
"लेकिन इतने पैसे बाबुजी के पास कहाँ से आये?" नंदनी ने हैरानी से पुछा।
"चिंता मत करो बहू! तुम्हारे ससुर ने ये जुते अपनी मेहनत की कमाई के पैसों से खरिदे है?" पार्वती बोली।
"क्या मतलब मां?" रमन ने पुछा।

"दिन भर घर में बोर होते थे। चौक पर दोस्तों के साथ गप्पें लड़ाते-लड़ाते थक गये तो हमारे ही मोहल्ले की एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। तेरे पापा को भी आज पहली तारीख पर तनख्वाह मिली है। ये जुते उसी तनख्वाह के रुपयों से आये है।" पार्वती ने बताया।

"मगर पिताजी! आपको नौकरी करने की क्या जरूरत थी।" रमन बोला।
"मुझे जरूरत नहीं थी बेटा! ये बात मुझे पता है। मगर मुझे लगा, खाली वक्त़ बिताने के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह है।" गंगाराम बोले।
रमन समझ चुका था कि उसके पिताजी मूल बात छिपाना चाहते है।
"देख बेटा! तु हमारे घर की रीढ़ है। तुझे कुछ भी जाये तो हमारा गुजर- बसर कैसे होगा? इसलिए सबसे आवश्यक है कि तु पुरी तरह स्वस्थ्य रहे और सभी आवश्यक वस्तुएं तेरे पास हो ताकी तेरी दिनचर्या किसी भी तरह प्रभावित न हो।"
गंगाराम बोले।

"मगर पिताजी! इन रुपयों से आपका चश्मा भी खरीदा जा सकता था।" रमन बोला।
"हां। लेकिन उससे भी जरूरी तेरे जुते थे। मेरा चश्मा अगले महिने बन जायेगा लेकिन तेरे फटे जुते अगले महिने तक नहीं चल पायेंगे।" गंगाराम बोले।
"मगर बाबुजी•••।" रमन बोलते-बोलते रूक गया।
"बेटा रमन! ये सब मैं हमारे परिवार के लिए ही कर रहा हूं। रमन! तु है तो हम सब है। तेरे बिना हम कुछ भी नहीं है।" गंगाराम बोलते हुये भावुक हो गये।
पार्वती की आंखे भी भर आयी। पिता-पुत्र की परस्पर चिंता ने उपस्थित सभी के नैन भिगो दिये।

"और ये ले। सुना है तेरी डायबीटीज की दवाई भी खत्म हो गयी है। तेरे बाबूजी घर आते हुये ये दवांये भी ले आये है। ले रख ले। और समय से खा लेना।" पार्वती कुछ कड़क आवाज़ का ढोंक करते हुये बोली।

रमन की तरह शेष सभी सदस्य नि:शब्द थे। गंगाराम और पार्वती के कृत्यों को देखकर नदंनी अपना कद बहुत छोटा अनुभव कर थी। अंश और अंशिका को शायद पहली बार अपने पिता का महत्व किसी ने इतने सरल तरीके से समझाया था....

 *   " दोस्तों जीवन में "पिता "का महत्व कया होता है अपने हाथ मे अंगूठे के जैसा है जो परिवार में सबको बांधकर रखता है जैसे एक मुठ्ठी बनाने मे अंगुलियों को अंगूठा अपने पीछे कर सामने से मजबूती देता है " *
      ...Thanku for read...

Thursday, June 18, 2020

"एक दूजे के लिए.....

Meri kahaniya 
       "एक दूजे के लिए.....

लड़की के बाल थोड़े उलझे से थे....
Meri kahaniya

जैसे की सुबह बना कर दोबारा कंघी करने का समय ही ना मिला हो...उसपर मटमैले से रंग का कुरता भी घिसा सा था...

वो चुपचाप कोने की कुर्सी पर बैठी थी...

जतिन को बड़ा अटपटा लगा कया ये वही लड़की है जिससे मिलने वो आया है बायोडाटा के हिसाब से वो लड़की के लिए और लड़की उसके लिए पूरी तरह से सही लग रहे थे...लेकिन अब उसे ऐसा नही लग रहा.. 
अरे कंघी तो कर लेती और क्या यही सबसे अच्छा कुरता है लड़की के पास... 
वो आज खुद तो अपनी सबसे बढ़िया शर्ट पहन कर आया है...
                             

"छाया....अब जतिन को अपने कमरे में ले जाओ दोनों एक दूसरे से जो पूछना हो पूछ लेना " अपनी माँ की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे छाया ने मुंह टेढ़ा सा किया हो

सब बड़े मजे से चाय नाश्ते का लुफ्त उठा रहे थे ऐसे हंस बोल रहे थे जैसे की रिश्ता तय ही हो गया हो।

जतिन चुपचाप छाया के पीछे पीछे चल पड़ा। छाया का कमरा देख उसे आश्चर्य हुआ। बड़े खुशनुमा से रंग बिखरे थे हर तरफ...
सामने छाया की बड़ी सी तस्वीर गुलाबी सूट में कितनी खूबसूरत दिख रही थी...

नजरें सामने करीने से रखी ढेर सी किताबों पर जा पडी।

"लगता है, आप को पढ़ने का बहुत शौक है....

जतिन का सवाल सुन कर छाया थोड़ा चिढ कर बोली

"क्यों नहीं होना चाहिए क्या ...

अब जतिन को थोड़ा गुस्सा आने को हुआ जाने खुद को क्या समझती है .... 
रोज नाश्ते में कौवे खाती है कया..

सोच कर उसके मुँह से हल्की सी हँसी फूटी...

छाया ने अचरज से जतिन को देखा....लड़का बड़ा अजीब है। बिना बात हँस रहा है।

"देखिये....बाहर चलते है बात क्या करनी है मैंने तो पापा मम्मी से यही कहना है कि मुझे लड़का ...
आई मीन रिश्ता पसंद नहीं है। "

छाया की बात सुनकर जतिन हैरान रह गया। फिर हँस कर बोला

"अब समझ आया कि आप झल्लों माई क्यों बन कर बैठीं है वैसे कौन है वो....

"वो ....कौन वो ....
अरे नहीं अफेय- वफेयर नहीं है। बैंक पी ओ की तैयारी कर रही हूँ। नौकरी लग जाने के बाद ही शादी करूँगी....

"तो फिर हमें बुलाया क्यों... 
पहले ही मना कर देना था ... जतिन ने थोड़ा रुखाई से पूछा।

"मना किया था। पर मौसी ने जिद पकड़ ली थी... 
बिलकुल राम -सीता की जोड़ी है कह कह कर, पापा मम्मी का पीछा छोड़ा ही नही... 
फिर पापा मम्मी मेरे पीछे पड़ गए। बस अब मना कर दूंगी और ये किस्सा ख़त्म ....

"चलो ठीक है पर मना करने का कारण क्या बताओगी ....

छाया सोच में डूब गयी।

"वैसे बुरा न मानो तो एक बात कहूँ...
तुम्हे पढ़ना ही है ना तो अभी बस सगाई कर लेते हैं और शादी एक साल बाद कर लेंगे...
एक साल में पास हो तो जाओगी ना....

"हो तो जाना चाहिए पर अगर एक साल में नहीं हो पायी तो....
फिर एक साल इन्तजार करेंगे क्या

"अब इन्तजार की तो हद होती है ना...
सो एक साल से ज्यादा इन्तजार तो नहीं कर सकता...
पर हाँ एक वादा कर सकता हूँ !"

"क्या....

"यही की अगर इस साल पास नहीं हो पाईं तो शादी के बाद घर का आधा काम तो कर ही दूंगा ताकि तुम आराम से पढ़ो और तसल्ली से पास हो बैंक अफसर बन जाओ। बस एक शर्त है...

"अब शर्त भी रखोगे ....

"हां.... बस दोबारा कभी ये मटमैला कुरता नहीं पहनना....
इसे तुरंत आज के आज फैंक देना

जतिन की बात सुन छाया जोरों से हँस पडी। जतिन भी हँसने लगा।

दोनों की हंसने की आवाजें बैठक तक पहुँची तो मौसी चहक कर बोली....

"देखा ना.... दोनों कितने खुश है...मैं ना कहती थी, दोनों बस एक दूजे के लिए ही बने है....

         ......Thanku for read......

Wednesday, June 17, 2020

" * तोहफा * "

                             तोहफा.....
                                      

आज सुबह ही सुधा का मन उदास हो चला था... कोरोना के कारण जन्मदिन भी नही मना सकते है...
ना कोई खरीददारी.....
ना बाहर खाना ना कोई पार्टी ,ना सजना ना सँवरना...
यूँ तो पतिदेव मोहनजी ने और बच्चो ने विश किया परंतु पूरा दिन सूना सूना सा लग रहा था... परिवार के बिना उदासी ही उदासी...
तभी मोबाइल बजा ,स्क्रीन पर भाभी जी की फोटो डिसप्ले हो रही थी...

" हैलो.... दीदी...हैप्पी बर्थडे ....
                                        
अब व्हाट्सएप खोल कर वीडियो देखो....
ये कया....भाभी जी अच्छी तरह से विश भी नही कर सकती....
मन सा मसोस कर सुधा ने वीडियो खोली ....
मधुर धुन के साथ उसके बचपन की तस्वीरे... 
उसके बाद परिवार के प्रत्येक सदस्य ने बारी बारी से उसके व्यक्तित्व की खूबसूरती पर चंद पंक्तियां बोली , फिर सभी ने ....
भाई-भाभी, मम्मी- पापा ,सास -ससुर, जेठ - जेठानी परिवार के सभी बच्चों ने मिलकर उसके लिए हैप्पी बर्थडे सोंग गाया ...
ये देखकर खुशी के आँसू आ गए... 
वीडियो एक बार ,दो बार , तीन बार देखा...
फिर फटाफट वीडियो काॅल लगाया ...
तो तीन घरों में केक मेज पर रखे हुए है....
सुधा भी घर में केक बनाया था जो पतिदेव मोहनजी ने मेज पर रख दिया....
अब सब जगह केक काटा जा रहा था और उसकी आँखों में प्यार के आँसू छलक आए ....
कितना सुखद अहसास होता है '''' 
हम घर में भले अकेले हैं ,लेकिन यदि हमारा परिवार हमें प्यार करता है तो जंगल में भी मंगल है....
उसका दिल किया , सबसे बहुत बहुत प्यार कर ले... सबको कृतज्ञता प्रकट करे....
और अपने व्यक्तित्व को और भी अच्छा गढ़ ले....
' प्रशंसा और प्यार ' से बढ़कर अमूल्य तोहफ़ा नहीं हो सकता है ....
ये उसने आज पहली बार महसूस किया ...
                                   

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Monday, June 15, 2020

" * आदत * "

   Meri kahaniya 
                               
                             *  आदत  *
                                         

 *  आज रागनी का फ़ोन आया था .....रात को खाना खाने के बाद मोहन बेड रूम में TV देख रहे थे। तो पत्नी सुधा ने उसे बताया ...."  अच्छा ...क्या कह रही थी ??...
 मोहन ने TV का वॉल्यूम कम करते हुए पूछा ....
वो कह रही थी कि कुछ दिनों के लिए आ जाओ ..दो साल हो गए है मिले हुए ...
उसके पोते के जन्मदिन पर गयी थी ,उसके बाद नही जा पाई अपनी बहन के पास ...
मम्मी पापा के देहांत के बाद मायके के नाम पर एक भाई और एक बहन है जब भी वो पंजाब जाती है तो दोनों से मिल आती है ....
मोहन ने तुरंत ही उसके अगले दिन की ट्रेन की बुकिंग भी करवा दी ।
सुधा ने चुटकी लेते हुए कहा ...मैंने तो युही जिक्र किया था ...आपने तो सचमुच बुकिंग भी करवा दी......
...बहुत जल्दी है मुझे भेजने की 😒....
अरे...मैने तो ये सोच कर बुक करवा दी कि तुम्हारा मन चेंज हो जाएगा और मायके भी घूम आओगी🙄..
..सचमुच भलाई का तो जमाना ही नहीं है ... मोहन ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा....

अच्छा तो सच में मेरी 15 दिनों की छुट्टी ... हाँ ..भाई जाओ जी लो अपनी जिंदगी .. मोहन बोला ,
मगर मन ही मन सोचने लगा 🤓 अब जमेगी रोज महफ़िल ..
..अब जिंदगी तो मैं जीऊंगा ......

इस बार सुधा को तो पंद्रह दिनों की छुट्टी मिल गई...दो तीन दिन भाई के पास रहकर बहन के पास आ गयी वहाँ सब खुश थे उसके आने पर ...
रोज नये-नये पकवान और रात देर तक बाते ..आज यह नई साड़ी खरीदी , नए गहने खरीदी से लेकर परिवार की सब समस्याओं पर ढेरों बाते... रोज़ शॉपिंग के लिये निकल जाते । 
छोटे शहरों में शॉपिंग का भी अलग मज़ा होता है......सुधा तो वहा जा कर बिज़ी हो गई मगर हर सुबह शाम मोहन का फोन आ जाता..."आज़ नाश्ते में आलू के परांठे बनाये ,लंच में पुलाव बनाया रात को भाटिया जी के यहां पैग लग रहें है कभी रात को चार दोस्तों की हमारे घर में महफ़िल चल रही है ... सब को पता था भाभी जी घर पर नही है ख़ूब मज़े हो रहे थे इनके तो ...
अभी बहन के घर में चार दिन भी नहीँ हुये थे कि मोहन का फोन आ गया ...
"सुधा....तुम्हारी शुक्रवार की टिकट बुक करवा दी है तुम आ जाओ ...
लेकिन मेरा तो पंद्रह दिन का प्रोग्राम था ...
मोहन के कहने से ही उसका मूड ऑफ हो गया लेकिन टिकट बुक थी वापिस आना पड़ा... 
नई दिल्ली के स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी पहुंची तो देखा मोहन उसे लेने आया हुआ था... ..
उसे देखकर वो इतना ख़ुश नज़र आ रहा था जैसे बरसो बाद उसने सुधा को देखा हो ...
कार ड्राइव करते हुये भी बड़े प्यार से उसे देख रहा था जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन की डोली ले जाते समय देखता है...
अब कभी नही भेजूंगा तुम्हें ...
तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नही लगता घर मे...

एक दो दिन तो आज़ादी सी लगती है मगर ....
तीसरे दिन ही घर की हर चीज़ में तुम्हारी कमी खलने लगती है तुम्हारे बिना जीने की कल्पना से ही काँप उठता हूँ दोपहर को लंच के लिये तुम्हारे फोन का इंतज़ार करने की ऐसी आदत थी कि बिना तुम्हारी कॉल के घर आने को मन नही करता था। एक दूसरे की इतनी आदत हो जाती है , इतने बरसों साथ रहते रहते कि एक के बिना दूसरा अधूरा सा लगता है ...
आज़ मैं पालक पनीर बना कर आया हूँ घर जाकर इकठ्ठे डिनर करेंगे "मोहन अपनी धुन में बोले जा रहा था और सुधा के कानों में मिश्री सी घुल रही थी... 
इतना बोलते तो कभी नही सुना था उस ने मोहन को..... इस एक हफ्ते की दूरी ने हम दोनों को कितना क़रीब कर दिया था....
                                          
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Sunday, June 14, 2020

"! संतोष !"

  मेरी कहानियां 
                                   संतोष
                     

Santosh(संतोष)..
----  सरला की तेरहवीं के अगले दिन रसोई से आती आवाजें सुनकर अमरनाथ जी ठिठक गए ....
बनारस वाली मामी कह रही थी कि तुम्हारी सास सुहागन मरी थी तो तुम लोग उनके कपड़े प्रसाद की तरह ले लो ....बड़ी बहू ज्योति की आवाज थी ...
Kya..मम्मी जी के कपड़े ......No way... वो low स्टैण्डर्ड साड़ियां ....बिना maching के ब्लॉउज ... बदरंग ..पेटीकोट ...yakkk...देखकर ही मितली आती है । फिर हम दोनों साड़ियां पहनती ही कहा है ... छोटी बहु काजल के स्वर की कड़वाहट उनसे छुपी नही रही .....
ऐसा करते है ,दिखावे के लिए ले लेते है फिर बाद में कही बाट देंगे.....
ऐसी साड़ियां तो हमारी मेड भी नही पहनेंगी ....कम से कम रिश्तेदारों को संतोष हो जाएगा .....ज्योति ने कहा तो धीरे से दोनो हँस दी ...
दिन भर सरला इन्ही बहुओं की नाम की माला जपती थी।...जाते समय छुपा कर पैसे पकड़ाती थी कि ..दिल्ली में अपने मन पसन्द कपड़े खरीद लेना .......

......औऱ ये दोनों ........
अमरनाथ जी की आंखे छलछला आयीं । कमरे में आकर उन्होंने सरला की हार चढ़ी फ़ोटो पर नजर डाली ....आंख पोछते हुए उन्होंने सरला की अलमारी खोली ....गिनी चुनी 20-25 साड़ियां थी ... सरला को संजने सवँरने का कोई खास सौक नही था ...अपनी घर गृहस्थी, पूजा पाठ और बागवानी में ही उसका मन रमता था ।...
बगीचे और किचन गार्डन में उसके प्राण बसते थे ...सरला की शादी की चुनरी को अमरनाथ जी ने आंखों से लगाकर अपने कपड़ो के साथ रख लिया ........
दो बेगो में सरला के सारे कपड़े भर कर वे निकल गए पास ही बन रहे निर्माणाधीन इमारत में बिहार के कई मजदूर परिवार काम मे  लगे थे ...दोनो बैग उन महिलाओं के सुपुर्द कर वे हाथ जोड़ कर लौट पड़े ....


...मजदूर महिलाओं के चेहरे पर झलकी खुशी ने  उनको सुकून दिया था ।.....
शाम होने लगी थी ....कमरे की बत्ती न जला कर उन्होंने सरला की तस्वीर के आगे दिया जलाया ....झिलमिलाती रोशनी में उन्हें लगा कि सरला मुस्कुरा रही है.....
अमरनाथ जी के चेहरे पर संतोष का ज्वाला फैल गया...।।।।।।

पुरुष का बलात्कार

आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटना...