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Thursday, April 20, 2023
पुरुष का बलात्कार
Monday, January 4, 2021
// Sathi //
Tuesday, December 22, 2020
// मां //
Monday, December 21, 2020
||। कोर्ट पैंट ||
Tuesday, August 4, 2020
! बंधन निःस्वार्थ !
शिवम् अपनी बहन से बोला - दीदी....इस बार मे काफी बुरे वक्त से गुजरा हूं ये कोरोना बीमारी की वजह से हुआ लाँकडाऊन .......नौकरी भी नही रही ....
जैसे तैसे सब्जियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं इसलिए इसबार मे केवल तुम्हें इक्यावन ( 51 ) रू ही दे पाऊंगा.....
दीदी - अच्छा.... यदि तुम मुझे केवल इक्यावन रू दोगे तो मे भी इसबार कागज की राखी बांधूगी ....
और मिठाई की जगह खीर बनाकर लाऊंगी.....
कहकर दीदी चली गई .....
शिवम् की पत्नी भावना- देखा शिवमजी.....दीदी.बस पैसों के लिए आपको राखी बांधती है कोई प्यार या स्नेह के लिए नही....
शिवम् - नही भावना ....ऐसा नही है ...दीदी मुझे बचपन से स्नेह करती है ममता करती है मां जैसे......
हूं..... करते भावना अंदर चली गई....
अगले दिन राखी पर....
दीदी आई सचमुच मिठाई की जगह खीर बनाकर लाई एक थैले मे सचमुच कागज की राखी बनाकर लाई थी...
ये देखकर भावना मुस्कुरा रही थी....
दीदी ने तिलक किया खीर से शिवम् का मुंह मीठा करवाया राखी बांधी और शगुन के इक्यावन रु लेकर माथे से लगाकर खुशी से चली गई ....
कुछ देर मे शिवानी ने पापा के हाथों से राखी को हंसते खेलते खींचा .....
हे ....ये कया .....राखी दो दो हजार के पांच नोटों से बनाई हुई थी साथ मे एकबात उस कागज पर लिखी हुई थी जिसमें दो दो हजार के नोट थे ....
शिवम् ...मेरे भाई ...ये प्यार और आपसी संम्बधो को मजबूत करने वाला त्यौहार है लेनदेन का नही ....
और ये पैसे कोई उपहार या लेनदेन के लिए नही बल्कि एक साथ खडी बहन का आशिर्वाद है ...जब सुख के दिन नही रहे तो यकीन मान दुख के भी नही रहेंगे ....
हम भाई बहनों का प्यार निस्वार्थ होता है ...
सदा खुश रहो.....
अब शिवानी की आँखों में भी खुशी के आँसु थे मगर भावना शर्मिंदगी से सर झुकाये खड़ी थी ....वो भी भाई बहन के निस्वार्थ प्रेम के आगे नतमस्तक थी....
Monday, July 20, 2020
! "*आर्मी मैन पार्ट - 4 *" !
Friday, July 17, 2020
! * आर्मी मैन पार्ट - 3 * !
Thursday, July 16, 2020
! *.. आर्मी मैन पार्ट - 2. . * !
Tuesday, July 14, 2020
.. ! आर्मी मैन !..
Sunday, July 5, 2020
.. ! "* सच्ची मोहब्बत *" ! ..
Wednesday, July 1, 2020
"*आत्मा की शांति *"
आत्मा की शांति.....
घर में क्रंदन मचा हुआ था। रात घर के मुखिया प्रकाश जी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। सभी रिश्तेदारों को खबर करवा दी गई थी। दूर-दूर से रिश्तेदारों के आने में 12:00 बज गए। प्रकाश जी की पत्नी अपने पति की असामायिक मृत्यु से सदमे में थी और कई बार बेहोश हो चुकी थी। उनकी पुत्र वधू किसी तरह उन्हें संभाल रही थी।
उनका डेढ़ वर्षीय पोता अपनी दादी के आंसू पोंछता और फिर खुद भी रोने लग जाता। थोड़ी थोड़ी देर में वह अपनी मां को दूध व खाने के लिए भी कहता। लेकिन रमा आने जाने वालों को पानी देने व बैठाने के इंतजाम करने में इतनी व्यस्त थी कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
दाह संस्कार से आने के बाद बड़े बुजुर्ग व अन्य पारिवारिक सदस्य प्रकाश जी की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं के शांतिभोज में क्या क्या बनेगा इस बात पर चर्चा करने बैठ गये।
रमा की बुआ सास ने उसे घर की धुलाई के लिए बोल दिया। रमा ने जल्दी से सारे काम निपटा, अपने बेटे के लिए खिचड़ी बना दी। वह जैसे ही उसे खिलाने के लिए खिचड़ी थाली में डालने लगी, तभी बुआ सास रसोई में आ गई और खिचड़ी देखते ही गुस्से से बोली "यह क्या अनर्थ कर दिया बहु तूने! तुझे इतना भी नहीं पता कि घर में 2 दिन तक चूल्हा नहीं जलता!"
रमा घबरा गई और बोली "माफ करना बुआ जी, मुझे नहीं पता था। राघव सुबह से भूखा था और वो दोपहर में खिचड़ी ही खाता है इसलिए मैंने बना दी।"
" खिचडी क्यों, पकवान बना देती! कुछ देर और रुक जाती पड़ोसी ला रहे थे ना खाना बनाकर। पर तुम्हें तो अपनी मनमानी करनी है। अब खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही है। अपने ससुर की आत्मा की शांति चाहती है तो जा फैंक दे इस खिचड़ी को।"
रमा जैसी खिचड़ी को फैंकने लगी, तभी उसकी सास वहां आ गई और बोली "रुक जा बहु। खिचड़ी फैंकने की कोई जरूरत नहीं । जा इसे राघव को खिला दे।"
"यह क्या कह रही हो भाभी। यह तो नादान है। तुम्हें तो सब रीति रिवाजों का पता है ना!"
"सब पता है मुझे इन आडंबरों का। वहां तेरे भैया की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई और यहां बैठ सब उनकी तेरहवीं पर बनने वाले पकवानों की लिस्ट बनाने बैठ गये। देखो तो जरा बाहर। अभी तक सब घड़ियाली आंसू बहा रही थे और अब हंसी ठिठोली में मगन है। ये सब तो समझदार है ना! जानती हूं तुझे भी अपने भैया के असमय जाने का बहुत दुख है। लेकिन इसमें इस नासमझ का क्या दोष! इन रीति रिवाजों के नाम पर इस नन्ही सी जान को भूखा रखना शोभा देता है क्या! तुझे तो पता है ना कि तेरे भैया की जान बसती थी अपने पोते में तो क्या उसे भूखा देखकर उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। " कह रमा की सास रोने लगी.....
"सही कह रही हो भाभी। भैया की आत्मा को शांति उन पकवानों से नहीं, अपने पोते को ये खिचड़ी खाते देख कर मिलेगी। जा बहु खिला दे राघव को खिचड़ी।" कह वह भी अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछने लगी...
Thanku fot read.......
Sunday, June 28, 2020
* माँ का प्यार *
Wednesday, June 24, 2020
* नया रिश्ता *
Meri kahaniya..
नया रिश्ता
..........बिदा करा कर बारात वापस आयी और मैं इन्हें अपनी नौकरी वाले शहर ले आया । ......
छोटा सा मकान , आगे बरामदा , दो कमरे, किचन , पीछे कच्चा मिट्टी वाला आंगन जिसमे एक नीम का पंद्रह बीस फुट ऊंचा पेड़ था ।
पहले ही दिन सवेरे सवेरे इन्होंने आंगन के सेंटर में गोबर से लीप कर मायके से लायी तुलसी लगा दी ।चारो तरफ़ रंगोली बना कर दीपक जला मेरी तरफ़ विजयी भाव से देखा... मैं तो पहले ही सब हार चुका था .. मुस्कुरा दिया ।
इन्होंने मेरे क्वार्टर को उस सवेरे घर मे बदल दिया था । नीम वाले आँगन में कुछ कमी तो मुझे पहले भी लगती थी पर वो क्या थी , इन्होंने पहली सुबह ही बता दिया ।
गाँव और शहर का फर्क मुझे कभी इनकीं चेहरे हाथों की भाव भंगिमाओं में तो कभी चौड़ी फैलती आंखों में तो कभी मुँह से निकलती हाय राम , जे का है तो कभी हाय दैया में !
हर वक़्त एक ही सवाल पूछती , ' आपको का पसंद , का खाओगे , का बनाएं ? ऐसा दिन में चार पाँच बार तो हो ही जाता । और मैं टटोल रहा था कि इसे क्या क्या पसंद है ?.........
गाँव की मिठाई , साड़ियाँ , गहने इन्हें शहर में नही दिख रहे थे । बाज़ारो में इनको इतना सब नया नया दिख रहा था ये हर दुकान पर रुक कर पूछती , ' जे का है , जा से का होत , जे आपको पसंद , बो ले लो आप अपने लाने !"
मैं इसे पूछता ये ले लो , ये पहनोगी , ये खाओ , ये ले चलो .. पर हर बात का उत्तर एक ही होता , ' हमे का कन्ने जे सब ले कर , हमे नई लेने !"
एक महीना हो चला । इनका यही ' ना ना का पहाड़ा ' चल रहा था , मुझे अच्छा नही लग रहा था जो हर बात के लिए मना कर देती ।
वो शाम गहरा गयी थी ।....
आकाश में बादल भी घुमड़ रहे थे , आज शायद बारिश होगी , मैंने इन्हें कहा ... और लाइट चली गईं ।
बारिश के आसार होते ही बिजली जाती रहती थी पर शादी के बाद पहली बार आज शाम को घुप्प अंधेरा छा गया । मैं कुछ कहता इससे पहले ही ये आले में रखी ढिबरी जलाने की तैयारी करने लगी ।
उनकी आँखों में मुझे मायके की चमक दिख रही थी धुंधलके में घूँघट से ढिबरी की लौ में एक बार फ़िर से गाँव के उस पीछवाड़े के हीरे चमक उठे और मैं सम्मोहित सा इन्हें देख रहा था ।
.....ये माचिस जलाती और मैं फूँक मार कर बुझा देता ,तीन चार बार ऐसा ही किया और घूँघट चुप चाप झुक गया ..
मैंने कहा , " आज तुम्हे बताना ही पडेगा कि तुम्हे क्या क्या पसंद है .. सब्ज़ी में , मिठाई में , गहनों में , कपड़ो में कुछ बोलती ही नहीं , आज बताना ही पड़ेगी अपनी पसंद . ... वरना मैं ढिबरी नही जलने दूँगा ..। "
अचानक ... घूँघट मेरे सीने से आ लगा और मद्दम आवाज़ आयी , " आप और सिर्फ़ आप ... बस !" उस रात .. न तो बिजली आयी और न ढिबरी ही जली ... पर रात भर बादल बरसे और ... ख़ूब बरसे ...
......यार गांव की लड़की और शहर की लड़की में सच ने बहुत अंतर होता है ।
आपको ये स्टोरी कैसी लगी ।।।...... कमेंट seccion में जरूर बताएं।।।
... ...thanku for read.....
Sunday, June 21, 2020
* Happy Father's day *
Friday, June 19, 2020
* महत्व * ( पहली तारीख )
Thursday, June 18, 2020
"एक दूजे के लिए.....
Wednesday, June 17, 2020
" * तोहफा * "
Monday, June 15, 2020
" * आदत * "
Sunday, June 14, 2020
"! संतोष !"
पुरुष का बलात्कार
आज का समाज बहुत आगे बढ़ चुका है । आज लड़का और लड़की दोनो को ही समान नजरो से देखा जा रहा है । आज हम जहा सिर्फ लड़की के साथ होने वाले गलत घटना...




































